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हमेशा याद रहेंगे चमचमाती वर्दी वाले छोटे कद के ‘बड़े’ आदमी बाबूराम छेत्री

देहरादून। नाम- बाबूराम छेत्री। काम- गार्डगिरी। कद- बामुश्किल साढ़े चार फीट। वाहन- वर्षों से चमचमाती साइकिल। बाबूराम नहीं रहे। गुजरे मंगलवार को उन्होंने दुनिया से विदा ली। बाबूराम न नेता थे-न अभिनेता। न धनाढ्य व्यवसायी-न सोशल वर्कर। न उनके नाम किसी तरह की उपलब्धि थी। वे बहुत साधारण से आम आदमी थे। मगर, उनकी लोकप्रियता अद्भुत थी। पुराना दून उन्हें ‘अपना’ मानता था। उनसे आत्मीयता रखता था। नए दून का भी एक बड़ा वर्ग उनसे जुड़ाव महसूस करता था।

अनुशासन, दृढ़ता और कर्त्तव्यनिष्ठा ने बनाया आम शख्स को खास शख्सियत
कैसे कोई आम शख्स बिना किसी उपलब्धि के भी ‘खास सख्शियत’ हो सकता है। छोटे कद का होकर भी कैसे ‘बड़े कद’ का इंसान बन सकता है। कैसे विपरीत हालात में भी ताउम्र ‘उत्साही चिरयुवा’ रहा जा सकता है। यह सब दिखा-सिखा गए बाबूराम। पेशे से मामूली से सुरक्षा गार्ड बाबूराम छेत्री के बारे में सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है। उन्हें उम्रदराज लोगों से लेकर नौजवान युवा तक ‘भावांजलि’ दे रहे हैं। अखबारों तक में उन्हें जगह मिली है। यह उनकी लोकप्रियता को ही दर्शाता है। इस आकर्षण-इस लोकप्रियता के पीछे कुछेक छोटे-छोटे मूलमंत्र है। कठोर अनुशासन, दृढ़ता, सहजता, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, समयबद्धता और स्वच्छता जैसे इन मूलमंत्रों का बाबूराम ने सदैव पालन किया।

तीन दशक तक विंडलास शॉपिंग कांप्लेक्स परिसर की बने रहे पहचान

राजपुर रोड पर स्थित है विंडलास शॉपिंग कांप्लेक्स। इस कांप्लेक्स में बाबूराम छेत्री लगभग तीन दशक से भी ज्यादा बतौर सुरक्षागार्ड सेवा दी। एक तरह से इस पूरे कालखं डमें वे इस शॉपिंग कांप्लेस परिसर की खास ‘पहचान’ बन गए थे। छोटे कद के होने के बावजूद उनका रूआब ऐसा कि एक पल को कोई भी ठिठक जाए। इसकी एक बड़ी वजह उनकी सैन्य अधिकारियों सरीखी चमचमाती वर्दी थी। सर्दी-गर्मी-वर्षा कैसा भी मौसम हो कोई ढूंढकर भी उनकी वर्दी में एक सिलवट तक नहीं निकाल सकता था। हर वक्त प्रेस की हुई। अधिकांशतः खाकी वर्दी ही वे पहनते थे। इसके अलावा आसमानी कलर और रेड कलर की वर्दी में भी उन्हें देखा जाता रहा है। घुटनों से कुछ नीचे तक के जूते। कंधे से जेब तक डोरी के सहारे बंधी सीटी। गले में मोटी रूद्राक्ष की मालाएं। सिर पर बड़ा सा हैट और हाथ में बेंत। साईकिल (अक्सर लेडिज साइकिल) पर उन्हें बावर्दी आता-जाता देख हर किसी की नजर एकबारगी उनकी ओर जरूर जाती थी। आते-जाते गर्मी और सर्दी से बचने का उनका इंतजाम भी कम आकर्षक नहीं था। साईकिल की गद्दी से डंडे के सहारे बंधा उनका छाता उनके सिर के ऊपर बारिश और धूप से बचाव करता था। साईकिल पर ‘हेडलाइट’ गुजरे जमाने की बात हो चुकी। बाबूराम की साईकिल पर वह भी हमेशा लगी मिलती थी।

हमेशा के लिए शांत हो गई गलत पार्किंग पर गूंजने वाली वह ‘सीटी’

विंडलास शॉपिंग कांप्लेक्स की लंबी-चौड़ी पार्किंग पर बाबूराम की नजर चौतरफा रहती थी। मजाल क्या कोई अपने दुपहिया या चौपहिया को जरा भी गलत लगा ले। दूर बैठे बाबूराम की ‘सीटी’ एकदम से कानों में आ पड़ती थी। इसके बाद भी कोई न माने, तो वे सामने आ धमकते थे। अक्सर सख्त दिखने वाले बाबूराम हंसी-मजाक भी खूब करते थे। कोविड काल और उसके बाद से उनकी सक्रियता पर कुछ असर जरूर पड़ा। बीच में वे अस्वस्थ भी रहे। बावजूद इसके, उनकी सहजता-उनका उत्साह कम नहीं हुआ। पुराने दूनवासियों के एक बड़े वर्ग को निःसंदेह उनके निधन से विंडलास कांप्लेक्स और शहर की सड़कों पर एक चिर-परिचित-अनुशासित चेहरे की कमी जरूर खलेगी।

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