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टिहरी के ‘राम’ का वनवास खत्म, फिर उठने जा रहा 21 साल पहले गिरा रामलीला मंच का पर्दा

देहरादून। वह साल-2002 के शरद की दस्तक वाली रातें थीं। सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध ‘टिहरी’ इन दिनों बेहद उदास थी। उसका अंत बेहद करीब था। ऐसी उदासीभरी रातों में भी भारी मन से अपनी परंपराओं-अपने समृद्ध सांस्कृतिक परिवेश को बचाने-बढ़ाने और निभाने की कोशिशें जारी थीं।

ऐतिहासिक आजाद मैदान पर मंच सजा था। #टिहरी में शेष रह गए लोग अब भी हर रात पंडाल में जुट रहे थे। राम-लक्ष्मण के संवाद हों या रावण का अट्टाहास, लोग टकटकी लगाए देख-सुन रहे थे। हनुमानजी अशोक वाटिका उजाड़ रहे हों या छोटे-छोटे उत्साही वानर और राक्षस आपस में भिड़ रहे हों, सब पर बच्चे तालियां बजा रहे थे।

रामलीला की रातें दृश्य-दर-दृश्य आगे बढ़ रही थीं। ज्यों-ज्यों राजतिलक की तारीख नजदीक आ रही थी, टिहरी के बड़े-बुजुर्गों की बेचैनी बढ़ रही थी। महिलाओं, खासकर वृद्धाओं की भावुकता और आंखों की नमीं बढ़ रही थी। आखिर ऐसा होता भी क्यों न…! एक हंसता-खिलखिलाता शहर हमेशा के लिए दुनिया के नक्शे से मिटने जा रहा था। लोग बिछुड़ने और इधर-उधर बिखरने के करीब थे। उनकी दशकों पुरानी रामलीला के मंच पर हमेशा के लिए पर्दा गिरने जा रहा था। यकीनन, यह पीड़ा वही महसूस कर सकता है, जिसने अपने जीवन का खूबसूरत कालखंड वहां की मिट्टी-वहां की संस्कृति के साथ रच-बसकर बिताया हो।

साल-2002 में टिहरी के आजाद मैदान पर आखिरी बार हुआ था मंचन

आजाद मैदान की रामलीला के मंच पर सीता-राम-लखन के वनवास से लौटने की वह घड़ी भी आ गई। मंचन की आखिरी रात राम वनवास से लौटे….दरबार सजा…राजतिलक हुआ और मंच पर पर्दा गिरा। भावनाओं का सैलाब बह चला। लोगों ने नम आंखों के साथ अपने घरों का रूख किया। रामलीला के मंच पर आखिरी बार गिरा यह पर्दा टिहरी के आजाद मैदान पर फिर कभी नहीं उठा। ‘टिहरी के राम’ को एक बार फिर वनवास पर भेज दिया गया। इस बार ‘राजतिलक’ के बाद। आजाद मैदान से राम के साथ-साथ टिहरी नगरवासी भी हमेशा के लिए अंतहीन ‘वनवास’ पर भेज दिए गए। सबकुछ बिखर गया। जुलाई-2004 के बीतते-बीतते आखिरी व्यक्ति भी टिहरी शहर से हटा दिया गया। इसके बाद हर ओर पानी…। अथाह पानी…। यकीनन, टिहरी की जलसमाधि इस सदी की शुरूआत में भारत ही नहीं, विश्व की मानव जनित सबसे त्रासद घटना थी, जिसमें अपनी ही सरकारों ने एक हंसते-खिलखिलाते खूबसूरत और बहुरंगी संस्कृतियों वाले जीवंत शहर की ‘हत्या’ कर दी…। उसे हमेशा के लिए जलसमाधि दे दी…। उसके लोगों को विछोह की अथाह पीड़ा देकर उसे दुनिया के नक्शे से ही मिटा दिया।

दून में बसे टिहरी विस्थापितों की सामूहिक कोशिश हुई कामयाब, 15 अक्तूबर से मंचन

बहरहाल, साल-दर-साल समय बीतता है। कुछ लोग ‘संवेदनहीनता’ की ओर तेजी से बढ़ती महानगरीय भीड़भाड़ के बीच भी उस पुराने टिहरी शहर, उससे जुड़ी यादों, उसके सांस्कृतिक-सामाजिक परिवेश को सहेजने-समेटने की छिटपुट कोशिशों को जारी रखते हैं। फिर आती हैं साल-2023 की गर्मियां। देहरादून के ‘टिहरी नगर’ (दून यूनिवर्सिटी रोड) पर कुछ लोग जुटते हैं। सभी पुरानी टिहरी के बाशिंदे थे। कुछ टिहरी की जलसमाधि के वक्त उम्र के ढलाव पर थे। कुछ युवा और कुछ बच्चे। बच्चे अब युवा हो चले, युवा उम्र के ढलान की ओर बढ़ रहे और जो उस वक्त उम्र की ढलान पर थे, वे ठेठ बुजुर्गियत ओढ़ चुके। सब मिल बैठे तो तमाम यादें साझा हुईं। भावुकता के बीच एक फैसला लिया गया। फैसला रामलीला के मंच पर साल-2002 में गिरे पर्दे को फिर से उठाने का। टिहरी की रामलीला का मंचन ‘टिहरी नगर’ (देहरादून) में शुरू करने का। कमेटी का गठन हुआ। तैयारियां शुरू की गईं। सबकुछ दो दशक पहले सरीखा ही रखने की कोशिशें की गईं। इन लोगों के यह प्रसास इस शारदीय नवरात्र की पहली सांझ के साथ ही फलीभूत होने जा रहे हैं।

संस्कृति के साथ तकनीक का भी करेंगे इस्तेमालः अभिनव

युवा अधिवक्ता और ‘श्रीरामकृष्ण लीला समिति टिहरी-1952’ के अध्यक्ष अभिनव थापर का कहना है कि पुराने टिहरी शहर में 1952 में पहले पहल रामलीला का मंचन आरंभ किया गया। आजाद मैदान में साल-2002 तक यह आयोजन होता था। सैकड़ों टिहरीवासी इसमें जुटते थे। उत्साह का माहौल होता था। टिहरी शहर डूबने के बाद से इसका मंचन बंद हो गया। बकौल थापर, 21 साल के अंतराल के बाद अब देहरादून के टिहरी नगर में इसका मंचन पुनः आरंभ किया जा रहा है। जिस मैदान पर यह मंचन होगा, उसे आजाद मैदान ही नाम दिया गया है। कोशिश यह है कि पुराने लोगों की टिहरी और उसके सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ी यादों को ताजा करने के साथ ही नई पीढ़ी को भी वहां की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का एहसास कराया जा सके। रामलीला का मंचन 15 अक्तूबर से 25 अक्तूबर तक होगा। वह बताते हैं कि मंच पर संकृति और तकनीक का समन्वय रहेगा। जहां #रामलीला की भाषा-शैली, चौपाई, कथा, संवाद आदि सब पुरानी टिहरी जैसा ही होगा, वहीं डिजिटल तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाएगा। रामलीला के सीधे प्रसारण की व्यवस्था भी की गई है।

पूरे 50 साल बाद मंच पर उतरेंगे बचेंद्र पांडे
अभिनव बताते हैं कि सबसे वरिष्ठ कलाकार के तौर पर बचेंद्र कुमार पांडे नजर आएंगे। पांडे करीब 50 साल बाद मंच पर उतरेंगे। आयोजन में सचिव अमित पंत, डॉ. नितेंद्र डंगवाल, गिरीश चंद्र पांडे, नरेश कुमार, गिरीश पैन्यूली, मनोज जोशी, पूनम सकलानी, अनुराग पंत, अश्विनी पांडे समेत बहुत से लोगों का सहयोग मिल रहा है।

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