उत्तराखंड

गढ़वाली-कुमाऊनी, जौनसारी और हिंदी भाषा के चार  नवोदित लेखक हर वर्ष होंगे सम्मानित

 

देहरादून। बुधवार को सचिवालय में आयोजित उत्तराखंड भाषा संस्थान की प्रबंधकारिणी व साधारण सभा की बैठक में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। वर्ष-2014 के बाद पहली बार मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में लोक भाषाओं व लोक साहित्य में कुमाउनी, गढ़वाली, अन्य उत्तराखंड की बोलियों व उपबोलियों, पंजाबी व उर्दू में दीर्घकालीन उत्कृष्ट साहित्य सृजन व अनवरत साहित्य सेवा और हिंदी में उत्कृष्ट महाकाव्य, खंडकाव्य रचना, काव्य रचना, कथा साहित्य व अन्य गद्य विधाओं के लिए प्रतिवर्ष ‘उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान’ प्रदान करने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही गढ़वाली, कुमाउनी व जौनसारी लोक भाषा व हिंदी भाषा में 4 नवोदित उदयीमान लेखकों को भी प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाएगा। आगामी मई माह में भव्य समारोह आयोजित कर उत्कृष्ट साहित्यकारों को उक्त पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा। 

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई भाषा संस्थान की बैठक

 मुख्यमंत्री धामी ने उत्तराखंड के ऐसे रचनाकारों, जो अर्थाभाव के कारण अपनी पुस्तकों का प्रकाशन नहीं करा पाते हैं, उन्हें भाषा संस्थान की ओर से आर्थिक सहायता के रूप में आंशिक अनुदान देने के प्रस्ताव पर भी स्वीकृति दी। मुख्यमंत्री ने राज्य के प्रत्येक जनपद में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय भाषा सम्मेलन आयोजन करने के निर्देश भी दिए। यह भाषा संस्थान की एक बहुआयामी योजना होगी जिसमें शोध पत्रों का वाचन, भाषा संबंधी विचार विनिमय, साहित्यिक शोभा यात्रा, लोक भाषा सम्मेलन आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने ने प्रत्येक जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में डिजिटल/ई पुस्तकालय स्थापित करने के भी निर्देश दिए।  राज्य में नेशनल बुक ट्रस्ट के साथ मिलकर पुस्तक मेले का आयोजन और पुस्तक मेले में साहित्यिक संगोष्ठियों के आयोजन पर भी स्वीकृति दी गई। इसके साथ ही राज्यभर में सुविख्यात लेखकों की व्यखानमाला आयोजित की जाएगी।  मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि सरकार लोक भाषाएं व बोलियां हमारी पहचान और गौरव है। राज्य सरकार स्थानीय भाषाओं, बोलियों व संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए निरंतर प्रयासरत है। 

लोकभाषाओं के औच्चारणिक और वर्तनी के मानकीकरण के लिए होंगी कार्यशालाएं

बैठक में भाषा संस्थान के स्तर से साहित्यिक व शोध पत्रिकाओं के प्रकाशन पर भी सहमति बनी। साथ ही लोक भाषाओं के मानकीकरण के लिए कार्यशालाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन की भी स्वीकृति दी गई। सम्बन्धित अधिकारियों ने कहा कि उत्तराखण्ड में विभिन्न क्षेत्रों में गढ़वाली, कुमाउनी व जौनसारी बोलियो को बोलने वाले व लिखने वाले अलग-अलग हैं, जिनके लेखन में शब्दों का औच्चारणिक विभेद है। गढ़वाली एवं कुमाउनी बोली भाषा के औच्चारणिक व वर्तनी के मानकीकरण की अत्यंत आवश्यकता है। यह शिविर गढ़वाल एवं कुमाउं मण्डल में आयोजित किए जाएंगे। उत्तराखंड भाषा संस्थान राज्य व जिलास्तरीय भाषायी प्रतियोगिता आयोजित की करेगा।

 बैठक में भाषामंत्री सुबोध उनियाल, सचिव विनोद प्रसाद रतूड़ी, अपर सचिव व निदेशक भाषा संस्थान स्वाति भदौरिया, सदस्य डॉ. सुलेखा डंगवाल, प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री, डॉ. सुधा पांडेय, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, प्रो. देव पोखरिया, कवि व साहित्यकार डॉ. अतुल शर्मा आदि मौजूद रहे।  

 

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