ईलाज के लिए 24 घंटे तक अस्पताल-दर-अस्पताल भटका करेंट से गंभीर झुलसा बच्चा
देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि ऐन प्रदेश की राजधानी में भी गंभीर मामलों में पूरा हेल्थ सिस्टम ध्वस्त नजर आता है। हाल यह है कि राजधानी ही नहीं, जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में मौजूदा वक्त में ‘बर्न’ (गंभीर झुलसे) मामलों में उपचार की व्यवस्था ही नहीं है। यही स्थिति प्राइवेट अस्पतालों की भी है। ताजा मामला हर्रावाला क्षेत्र में हाईटेंशन लाइन के करेंट से गंभीर रूप से झुलसे 13 वर्षीय बच्चे का है, जिसे 24 घंटे से अधिक तक अस्पताल-दर-अस्पताल भटकने के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार के हस्तक्षेप के बाद एम्स ऋषिकेश में एडमिट करके फौरी तौर पर उपचार की शुरूआत की जा सकी।
छत के ऊपर गुजर रही एचटी लाइन के करेंट की चपेट में आया
देहरादून-हरिद्वार हाईवे से सटे हर्रावाला के सिद्धपुरम लेन नं.-2 स्थित एक किराए के मकान में अजय कुमार पत्नी मधु और बच्चों के साथ रहते हैं। अजय पुताई का काम करते है। बुधवार दोपहर करीब ढाई बजे अजय का 13 वर्षीय छोटा बेटा शिवम छत पर पतंग उड़ा रहा था। वह हर्रावाला के ही कोर इंटरनेशन स्कूल में पड़ता है। छत से कुछ ही फीट की ऊंचाई पर बिजली की हाईटेंशन लाइन गुजर रही है। अचानक शिवम एचटी लाइन की चपेट में आ गया। जोरदार धमाका हुआ और शिवम बुरी तरह झुलस गया। धमाके की आवाज सुनकर परिजन व आसपास के लोग छत पर भागे और शिवम को उठाकर तत्काल निकटवर्ती जोगीवाला स्थित कैलाश अस्पताल पहुंचाया। परिजनों के मुताबिक, वहां डॉक्टरों ने उसे प्राथमिक उपचार देकर हायर सेंटर ले जाने को कहा।
जिले भर के अस्पतालों में भटके परिजन, नहीं मिला कहीं ईलाज

पहले अस्पताल से रेफर होने के साथ ही शिवम और उसके परिजनों की फजीहत शुरू हो गई, जो 24 घंटे बाद तक जारी रही। शिवम के मामा पवन मौर्य ने बताया कि कैलाश अस्पताल के बाद शिवम को कोरोनेशन अस्पताल, दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल, श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल और जौलीग्रांट स्थित हिमालयन हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन सभी जगह उसे अन्यत्र ले जाने को कहा गया। किसी भी अस्पताल ने उसे एडमिट नहीं किया। सब जगह से निराश होकर उसे रात ऋषिकेश एम्स ले जाया गया, लेकिन वहां भी डॉक्टरों ने भर्ती नहीं किया। क्रिटिकल बताते हुए हायर सेंटर ले जाने को कहा गया। देर रात एम्स ने उसे किसी तरह अपने यहां रखा, लेकिन पवन बताते हैं कि आधी रात को फिर से उसे हायर सेंटर ले जाने को कह दिया गया। इस पर उसे ऋषिकेश में ही स्थित पेनिसिया अस्पताल ले जाया गया। बकौल पवन, पेनिसिया अस्पताल ने वीरवार दोपहर तक उसको रखा गया, लेकिन फिर अन्यत्र ले जाने को कह दिया। इसके बाद उसे फिर एम्स में ले जाया गया। काफी जद्दोजहद के बाद वीरवार अपराह्न साढ़े तीन बजे के आसपास एम्स ने उसे किसी तरह एडमिट किया।
स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार के हस्तक्षेप से शुरू हो पाया उपचार
दरअसल, शिवम को 24 घंटे बाद भी बेड मिल पाया, तो वह प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार के हस्तक्षेप के बाद। वीरवार दोपहर जब यह जानकारी सामने आई कि 24 घंटे से गंभीर रूप से झुलसा शिवम अस्पताल-दर-अस्पताल और एंबुलेंस-दर-एंबुलेंस भटक रहा है, तो कुछ पत्रकार सोशल मीडिया से लेकर व्यक्तिगत स्तर तक सक्रिय हुए। एम्स प्रबंधन से लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव तक संपर्क साधा गया। स्वास्थ्य सचिव डॉ. कुमार ने बताया कि बीती रात सूचना मिलने पर उन्होंने ही एम्स प्रशासन से बात करके शिवम को भर्ती कराया। जब उन्हें बताया गया कि एम्स ने रात ही उसे अन्यत्र ले जाने को कह दिया था और अब भी भर्ती नहीं किया जा रहा, तो स्वास्थ्य सचिव ने हैरानी जाहिर करते पुन हस्तक्षेप किया। डॉ. कुमार का कहना है कि परिवार का आयुष्मान कार्ड बना होगा, तो शिवम का संपूर्ण उपचार निःशुल्क होगा। उनका कहना है कि बर्न संबंधी मामलों में इंफेक्शन के खतरे को देखते हुए एक सीमा के बाद हायर सेंटर ले जाने को कहा जाता है, ताकि मरीज को खतरे से बचाया जा सके।
कोरोनेशन के बर्न वार्ड में डॉक्टर नहीं, अन्य किसी अस्पताल में बर्न वार्ड ही नहीं
दूसरी ओर, इस पूरे घटनाक्रम ने सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत एक बार फिर खोल कर रख दी है। देहरादून जिले में गंभीर रूप से झुलसे लोगों के इलाज की सरकारी तौर पर कहीं कोई पुख्ता व्यवस्था है ही नहीं। सबसे बड़े दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बर्न वार्ड ही नहीं है। लिहाजा, वहां बर्न केस एडमिट नहीं किए जाते। केवल जिला अस्पताल कोरोनेशन में ही बर्न वार्ड है। लेकिन, यहां का हाल और बुरा है। बताया गया है कि करीब एक माह पूर्व यहां बर्न वार्ड में तैनात डॉक्टर का तबादला हो गया। उनके स्थानांतरण के बाद किसी डॉक्टर की तैनाती हुई नहीं। लिहाजा, वार्ड में किसी भी बर्न केस को एडमिट नहीं किया जा रहा।
दून मेडिकल कॉलेज में सपोर्टिंग स्टाफ के इंतजार में शुरू नहीं हो पा रहा 10 बेड का बर्न वार्ड
इधर, दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि जिला अस्पताल में बर्न वार्ड में उपचार तो मिलना चाहिए, क्योंकि बर्न केसेज देखने के लिए आमतौर पर सर्जन या स्किन विशेषज्ञ की ही ड्यूटी लगाई जाती है। ऐसे में किसी के ट्रांसफर होने से व्यवस्था प्रभावित नहीं होनी चाहिए। बहरहाल, डॉ. सयाना का कहना है कि दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भारत सरकार की मदद से 10 बेड के बर्न वार्ड की स्थापना की जाने वाली है। डॉक्टर्स पर्याप्त हैं, लेकिन नर्सिंग और सपोर्टिंग स्टॉफ की कमी है। बिना सपोर्टिंग स्टॉफ के आधा-अधूरा वार्ड शुरू करने का कोई लाभ नहीं। इसलिए, प्रतीक्षा की जा रही है। जैसे ही सपोर्टिंग स्टॉफ मिलेगा, बर्न वार्ड का संचालन शुरू कर दिया जाएगा।

