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गंभीर सवालः सिलक्यारा टनल के लिए प्रधानमंत्री मोदी का दिया ‘एस्केप पैसेज’ आखिर कौन ‘निगल’ गया ?

देहरादून। सड़क परिवहन के लिए उत्तराखंड की सबसे लंबी निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल मामले में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ‘आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी’ (सीसीईए) ने पांच साल पहले इस टनल को बाकायदा ‘एस्केप पैसेज’ (आपात निकासी मार्ग) के प्रावधान के साथ मंजूरी दी थी। टनल तो तकरीबन 90 फीसद से ज्यादा बन गई, लेकिन एस्कैप पैसेज नहीं बना। ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सुरक्षात्मक लिहाज से सिलक्यारा टनल के लिए जो एस्केप पैसेज दिया था, आखिर वह कौन निगल गया और क्यों ?

पीएम की अध्यक्षता में सीसीईए ने 20 फरवरी 2018 को दी थी टनल को एस्केप पैसेज सहित मंजूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 20 फरवरी 2018 को कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स की बैठक हुई थी। इस बैठक में ‘चारधाम महामार्ग परियोजना’ के तहत उत्तराखंड में सिलक्यारा बैंड-बड़कोट टनल को मंजूरी दी गई थी। उसी दिन नई दिल्ली से इस बड़े निर्णय से संबंधित प्रेस नोट जारी किया गया था। प्रेस इफॉरमेशन ब्यूरो (पीआईबी) की ओर से जारी यह प्रेस नोट उसकी वेबसाइट के आर्काइव में अब भी उपलब्ध है। इसमें स्पष्ट तौर पर बताया गया कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने धरासू-यमुनोत्री सेक्शन में सिलक्यारा बैंड-बड़कोट के बीच ‘एस्केप पैसेज’ के साथ 4.531 किलोमीटर लंबी 2-लेन टनल के निर्माण को मंजूरी दे दी है।’

4.5 किमी. लंबी टनल प्रोजेक्ट के लिए मिला था कुल 1383.78 करोड़ का अनुमोदन

नेशनल हाईवे-134 (पुराना-94) पर सिलक्यारा टनल प्रोजेक्ट के निर्माण का जिम्मा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के वित पोषण से राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लि. (एनएचआईडीसीएल) को सौंपा गया। सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी एनएचआईडीसीएल की स्थापना साल-2014 में की गई थी। सीसीईए की मंजूरी मिलते समय इस टनल परियोजना को पूरा करने के लिए 4 साल का समय तय किया गया था। टनल निर्माण पर 1119.69 करोड़ की लागत अनुमानित की गई और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, निर्माण पूर्व की अन्य गतिविधियों, 4 वर्षों तक तक टनल की मरम्मत व परिचालन आदि के खर्च को जोड़ते हुए कुल 1383.78 करोड़ रूपये की मंजूरी इसके लिए दी गई। टनल निर्माण से धरासू और बड़कोट के बीच की दूरी करीब 26 किलोमीटर तक कम होनी थी और यमुनोत्री तक के सफर में भी एक से डेढ़ घंटे तक की कमी आनी थी। साथ ही समुद्रतल से करीब 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित राड़ी टॉप पर जाने की भी आवश्यकता इस टनल के बनने के बाद नहीं रहती। अभी राड़ी टॉप पर सर्दियों में भारी हिमपात के कारण गंगा घाटी और यमुना घाटी अलग-थलग पड़ जाती हैं। यमुना घाटी की बड़कोट, पुरोला और मोरी तहसील का उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से संपर्क कट जाता है। हालांकि, धरातल पर सिलक्यारा टलन का काम साल-2019 में शुरू हो गया था, लेकिन यह अपने निर्धारित समय पर पूरी नहीं हो पाई। इसे अब दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन यह अवधि भी आगे बढ़नी तय थी, क्योंकि अभी काफी काम बाकी है।

… तो क्या एस्केप पैसेज के लिए जरूरी था पहले आवश्यकता उत्पन्न होने (दुघर्टना) का इंतजार?

यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल में 12 अक्तूबर को दीपावली की सुबह हुए हादसे और 41 मजदूरों के अब तक वहां फंसे होने के बाद निर्माण कार्य में बरती गई लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अनदेखी को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। सबसे बड़ा और गंभीर सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने जिस ‘एस्केप पैसेज’ के साथ टनल निर्माण को मंजूरी दी थी, वह एस्केप पैसेज कहां गया…? क्यों इसका निर्माण नहीं किया गया…? सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एनएचआईडीसीएल अथवा निर्माण कार्य कर रही ठेकेदार कंपनी में से आखिरी किसने और क्यों एस्कैप पैसेज के प्रावधान के पालन को जरूरी नहीं समझा? प्रधानमंत्री अथवा उनकी कैबिनेट कमेटी ने ही बाद में यह ‘सुरक्षात्मक’ निर्णय खुद पलट दिया हो, ऐसा होने की कोई जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है। न ही ये संभव लगता। फिर ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी के निर्णय को पलटने अथवा न मानने वाली टनल निर्माण से जुड़ी वह ‘शक्ति’ आखिर कौन है? इस सबसे के परिप्रेक्ष्य में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का बीते रविवार को सिलक्यारा में मीडिया से बातचीत के दौरान दिया गया वक्तव्य भी कम चौंकाने वाला नहीं है। उन्होंने कहा था, ‘अब तक कई टनल का निर्माण किया गया और कहीं भी एस्केप पैसेज की आवश्यकता नहीं पड़ी।’ उनके इस वक्तव्य से सवाल उठता है कि क्या एस्केप पैसेज और उसका महत्व समझने के लिए पहले आवश्यकता (दुघर्टना) होनी जरूरी थी?

एक किमी. से ज्यादा लंबी टनल में जरूरी होता है एस्केप पैसेज का पालनः नौटियाल

सिलक्यारा टनल निर्माण में घोर लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अवहेलना की गई, यह एकदम साफ है। साल-2018 में देहरादून-दिल्ली हाईवे पर आशारोड़ी-डाटमंदिर के बीच 200 साल बाद टनल का निर्माण किया गया था। पीडब्ल्यूडी के राष्ट्रीय राजमार्ग खंड ने इसका निर्माण किया था। इस टनल निर्माण से एनएच के सहायक अभियंता के तौर पर जुड़े रहे पीडब्ल्यूडी के प्रांतीय खंड के सेवानिवृत्त अधिशासी अभियंता डीसी नौटियाल बताते हैं कि जहां छोटी टनलिंग का काम हो, वहां आमतौर पर एस्केप पैसेज की आवश्यकता नहीं होती। चूंकि, डाट टनल भी महज तीन-चार सौ मीटर की थी और छोटी पहाड़ी पर थी, लिहाजा वहां इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी। किंतु, एक किलोमीटर या उससे लंबी टनल का अगर निर्माण हो रहा हो, तो वहां एस्केप पैसेज (सुरक्षात्मक मार्ग) साथ-साथ बनाए जाने का प्रावधान होता है। नौटियाल बतात हैं कि एस्केप रूट के तहत बीच-बीच में बाहर से टनल के भीतर छोटे-छोटे निकासी डक्ट दिए जाते हैं, जिससे किसी भी दुर्घटना की स्थिति में श्रमिकों अथवा टनल चालू होने के बाद भी किसी आपात स्थिति में लोगों को निकाला जा सके। ऋषिकेश-ब्यासी के बीच रेलवे की निर्माणाधीन टनल में एस्केप पैसेज का यह प्रावधान देखने को मिल रहा हैं। वह कहते हैं कि सिलक्यारा टनल काफी लंबी है। वहां इसलिए एस्केप रूट के प्रावधान को मंजूरी मिली थी। लेकिन, इसका पालन न किया जाना निर्माणदायी एजेंसियों की घोर लापरवाही है। नौटियाल उत्तरकाशी जिले के सिलक्यारा-राड़ी-बड़कोट क्षेत्र में भी काफी समय तैनात रहे हैं। वह बताते हैं कि राड़ी टॉप और उससे नीचे तक बांज के घने जंगल हैं। पहाड़ में जहां बांज होता है, वहां पानी की मात्रा और स्रोत अच्छी-खासी मात्रा में होते हैं। ऐसे में सिलक्यारा टनल में ‘सीपेज’ की दृष्टि से भी अतिरिक्त एहतियाती उपाय किए जाने चाहिए थे, जो शायद नहीं किए गए। यहां यह उल्लेखनीय है कि जाने-माने भू-विज्ञानी और टनलिंग एक्सपर्ट डॉ. पीसी नवानी भी पूर्व में एस्केप पैसेज का प्रावधान न होने को लेकर सवाल उठाते हुए सिलक्यारा की घटना की वजह को लापरवाही और अनदेखी का नतीजा बता चुके हैं।

यदि स्टडी और मॉनीटरिंग का कंप्यूटराइज्ड सिस्टम था तो फिर क्यों हुआ हादसा?
पूर्व में एनएचआईडीसीएल की ओर से सिलक्यारा टनल की खूबियां भी खूब बताई गई थीं। इसमें कहा गया था कि न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मैथड (एनएटीएम) से बनने वाली यह ‘स्काडा सिस्टम’ (सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्वीजिशन) से लैस अत्याधुनिक टनल होगी। एनएटीएम में चट्टान तोड़ने के लिए नियंत्रित ब्लास्टिंग ओर ड्रिलिंग, दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। कहा गया था कि खुदाई के दौरान चट्टानों का अध्ययन और निगरानी कंप्यूटराइज्ड मशीनों के जरिए होगी, जिससे इंजीनियर्स को यह पता चलता रहेगा कि कहां कठोर चट्टान है और कहां कोमल। इसी के अनुरूप वे प्रारंभिक सपोर्ट की पहले से तैयारी कर सकते हैं। ऐसे में अब सिलक्यारा टनल हादसे के बाद इन सारे दावों पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है। साफ है कि या तो स्टडी और मॉनीटरिंग का कंप्यूटराइज्ड सिस्टम था ही नहीं, या वह ठीक से काम नहीं कर रहा था या फिर उसके बताए-दर्शाए अनुरूप एहतियाती प्रावधान नहीं किए गए। बहरहाल, ‘ईमानदार’ तकनीकी जांच के बाद ही इस टनल हादसे से जुड़े तमाम सवालों के जवाब मिल पाएंगे।

सीसीईए का प्रावधानित एस्केप रूट बनाया जाता तो आती यह नौबतः धस्माना

इस बीच, कांग्रेस भी टनल में एस्केप पैसेज के मामले को लेकर हमलावर हो गई है। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने सीसीईए के निर्णय के आलोक में सरकार से सवाल किया है। धस्माना ने पूछा कि वह एस्कैप पैसेज कहां गया, जिसे सीसीईए ने मंजूरी दी थी? यदि वह इमरजेंसी एग्जिट बनाया गया होता, तो यह नौबत ही नहीं आती।

 

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