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देहरा में 155 साल पहले हुई थी रामलीला की शुरूआत, आज भी देर रात तक दृश्य-दर-दृश्य आनंदित हो रहे दर्शक

देहरादून। शारदीय नवरात्र ज्यों-ज्यों अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहे हैं, राम की ‘लीलाएं’ भी सीता स्वयंवर से आगे अब वनगमन और विजय की दिशा में अग्रसर हो चली हैं। दूनघाटी में इन दिनों कई जगह रामलीला का मंचन हो रहा है। गुलाबी ठंडक के बीच देर रात तक दर्शक दृश्य-दर-दृश्य रामलीला का आनंद उठा रहे हैं।

1868 में भक्त लाला जमनादास ने किया था पहली रामलीला का श्रीगणेश


देहरा में रामलीला मंचन की परंपरा करीब 155 साल पुरानी है। उस वक्त तक आज के उत्तराखंड क्षेत्र में सिर्फ अल्मोड़ा में ही रामलीला होती थी। अल्मोड़ा में 1860 में रामलीला मंचन आरंभ हुआ था। उत्तराखंड में रामलीला के ज्ञात इतिहास में अल्मोड़ा की रामलीला को सबसे पुरानी माना जाता है। इसके बाद 1868 में देहरा में दरबार साहिब के समीप रामलीला मंचन की शुरूआत हुई। लाला भक्त जमुनादास ने अपने कुछ साथियों के साथ श्रीरामलीला कला समिति की स्थापना कर देहरा की इस सबसे पुरानी और पहली रामलीला के मंचन की शुरूआत की थी। तब से यह परंपरा आज भी जारी है। वहीं, तब के देहरा से सटे गढ़ी-कैंट क्षेत्र के डाकरा में होने वाला रामलीला मंचन भी एक शताब्दी पुराना है। इसी तरह, आदर्श रामलीला कमेटी 1950 से रामलीला का आयोजन कर रही है। पहले कई वर्ष म्युनिस्पल ग्राउंड में यह आयोजन होता था। कुछ वर्ष कालिका मार्ग स्थित अद्धैत आश्रम में भी इसका मंचन हुआ। अब चुक्खुवाला के श्रीगुरूनानक बालक पब्लिक इंटर कॉलेज में इसका मंचन हो रहा है। खुड़बुड़ा मोहल्ला और चुक्खुवाला में 50 के दशक से 80 के दशक के उत्तरार्द्ध तक रामलीला आयोजन हुए। राजपुर के वीरगिरवाली में होने वाला श्रीआदर्श रामलीला ट्रस्ट का आयोजन भी काफी पुराना है। इसी तरह गढ़भाषा साहित्य संस्कृति परिषद की गढ़वाली भाषा की रामलीला का मंचन भी दून में 1978 से 1990 तक काफी लोकप्रिय रहा। साल-2015 से पर्वतीय रामलीला समिति धर्मपुर स्थित विद्या मंदिर मैदान में, जबकि इस वर्ष से श्रीरामकृष्ण लीला समिति टिहरी-1952 भी दून यूनिवर्सिटी रोड पर रामलीला मंचन कर रही है।

सबसे पुरानी रामलीला में वृंदावन के कलाकार कर रहे मंचन
इन दिनों दून में रामलीला बाजार की श्रीरामलीला कला समिति की ओर से आयोजन हो रहा है। पहले चार दिन में यह आयोजन नारद मोह से लेकर सीता स्वयंवर तक पहुंच चुका है। सीता स्वयंवर के बाद बुधवार शाम शहर में राम बारात का आयोजन समिति की ओर से किया गया। इसमें काफी संख्या में झांकियां शामिल की गई थीं। समिति पिछले कुछ वर्षों से वृंदावन से कलाकारों की टोली को आमंत्रित कर रही है। इस बार भी वृंदावन के कलाकार रामलीला मंचन कर रहे हैं। देर रात तक पंडाल में काफी संख्या में स्त्री-पुरूष और बच्चे देहरा की इस सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ रहे हैं। रामलीला मंचन आज भी एक-डेढ़ सदी पुराने भवन में ही होता है। इस रामलीला की ओर से ही दशहरे के दिन झंडा तालाब के बीच लंका दहन किया जाता है।

संतराम नहीं, मगर पंडाल में अब भी गूंज रही उनकी गरजदार आवाज

श्रीआदर्श रामलीला कमेटी की ओर से चुक्खुवाला स्थित श्रीगुरू नानक बालक पब्लिक इंटर कॉलेज के मैदान पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है। कमेटी ने करीब डेढ़ दशक पहले ‘लाइट एंड साउंड’ तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मंचन की शैली अपनाई। यह दूनघाटी में होने वाले रामलीला आयोजनों में अपनी तरह की अकेली रामलीला है जहां पर्दा नहीं गिरता और एक साथ कई मंचों पर एक के बाद एक दृश्य बढ़ते चले जाते हैं। यहां रामलीला मंचन बुधवार रात तक सीताहरण और राम-सुग्रीव मिलन से आगे बढ़ चला था। इस रामलीला कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष रहे संतराम शर्मा का कुछ माह पूर्व निधन हो गया था। वे कई साल पहले रावण और दशरथ जैसे किरदार इस रामलीला में निभाते थे। अब वे नहीं रहे, लेकिन मंच पर उनकी गरजदार आवाज में लंकेश के संवाद अब भी गूंज रहे हैं। इसकी वजह यह है कि एक दशक पहले जब रामलीला मंचन के लिए कमेटी ने लाइट एंड साउंड तकनीक अपनाई थी, तो सभी संवाद रिकॉर्ड किए गए। संतराम शर्मा की आवाज का इस्तेमाल संवादों के लिए किया गया। वही रिकॉर्डेंड संवाद आज पंडाल में गूंजते हैं और मंच पर अभिनय चलता रहता है।

टिहरी नगर में हुआ राम बारात का भव्य स्वागत, विशिष्ट लोगों के सम्मान की भी पहल

इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में श्रीरामकृष्ण लीला समिति टिहरी-1952 की रामलीला का मंचन है। यह आयोजन देहरादून के अजबपुरखुर्द के दून यूनिवर्सिटी रोड पर टिहरी नगर कॉलोनी में हो रहा है। पुराने टिहरी शहर में इस रामलीला का मंचन 1952 से होता था। बाद में टिहरी बांध के कारण टिहरी जलमग्न हो गई और वहां के निवासी विभिन्न स्थानों पर विस्थापित हो गए। ऐसे में करीब 21 साल तक यह आयोजन नहीं हो पाया। इस बार टिहरी नगर क्षेत्र के निवासियों ने पुनः इस आयोजन को आरंभ करने की पहल की। नवरात्र की पहली रात से टिहरी नगर स्थित आजाद मैदान में मंचन हो रहा है, जिसमें देर रात तक काफी भीड़ जुट रही है। यहां बुधवार रात तक राम बारात का स्वागत सत्कार हो चुका था।

आयोजकों ने एक नई परंपरा आरंभ की है। इसके तहत अलग-अलग दिन अलग-अलग वर्गों से विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान वाले लोगों को आमंत्रित किया जा रहा है। अब तक विशिष्ट योगदान देने वाली महिलाओं और राज्य आंदोलनकारियों को मंच पर सम्मानित किया गया है। समिति के अध्यक्ष अभिनव थापर का कहना है कि पुरानी मंचीय परंपरा के साथ ही आधुनिक लेजर तकनीक और एलईडी स्क्रीन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मंचन के आकर्षण को और बढ़ा रहा है। इसके अतिरिक्त पर्वतीय रामलीला समिति की ओर से भी नगर में धर्मपुर क्षेत्र स्थित मैदान में रामलीला का मंचन किया जा रहा है।

राजपुर में राम वनगमन की ओर बढ़ा मंचन

शहर से करीब 9 किमी. दूर राजपुर में भी इन दिनों देर रात तक रामलीला मंचन हो रहा है। श्रीआदर्श रामलीला ट्रस्ट (राजपुर) के इस रामलीला मंच पर अब तक सीता स्वयंवर और लक्ष्मण-परशुराम संवाद जैसे दृश्य संपन्न हो चुके हैं। रामलीला मंचन अब राम वनगमन की ओर बढ़ रहा है। कमेटी के प्रधान योगेश अग्रवाल ने का कहना है कि चौपाई, रागिनी, गीत-संगीत और मनोहारी संवादांे का दर्शक तन्तय होकर आनंद ले रहे हैं।

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