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महिला है ‘राम’ यहां ‘हनुमान’ भी महिला, गरजती है इस मंच पर बन ‘लंकेश’ भी महिला

देहरादून। रामलीला का मंच। रंग-बिरंगी लाइटों की रोशनी से दूर इस समंच पर पर्दा खुलता है। सामने मर्यादा पुरूषोत्तम ‘राम’ संवाद बोलते हैं। संवाद आमतौर पर वही हैं, जो किसी भी रामलीला के मंच पर सुनाई देते हैं। अलग है, तो संवाद अदायगी का अंदाज और आवाज। हनुमान-मेघनाद के बीच वाद-विवाद होता है। उसमें भी संवाद अदायगी का अंदाज अलग। इस मंच पर लंकेश की गर्जना भी बाकी मंचों से अलग होने के कारण सभी का ध्यान खींचती है। ऐसा हो भी क्यों न? आखिर, रामलीला के मंचों पर पुरूषों का सदियों से चला आ रहा एकाधिकार जो टूटा है। यह एकाधिकार तोड़ा है अपने उत्तराखंड की महिलाओं ने। लिहाजा, मंच पर राम भी वहीं हैं और रावण भी। निर्देशक भी वही हैं और संगीतकार भी। यानी, सभी पुरूष किरदार भी वे ही निभाती आ रही हैं और शत-प्रतिशत मंचन इन्हीं मातृशक्ति के हवाले है। शनिवार से यहां अजबपुर स्थित सरस्वती विहार में दूनवासियों को ‘महिला रामलीला’ का यह मंचन देखने को मिलेगा।

साल-2020 में सरोज रावत की अगुआई में मानपुर कोटद्वार की महिलाओं ने तोड़ा पुरूषों का मंचीय एकाधिकार

उत्तराखंड मे रामलीलाओं के आयोजन का इतिहास डेढ़-दो सौ साल पुराना है। लेकिन, हाल के वर्षों तक रामलीलाओं का मंचन पूरी तरह पुरूषों पर ही निर्भर था। यानी, सीता, कैकेयी, मंथरा, मंदोदरी सरीखे महिला किरदार भी वे ही निभाते थे। लेकिन, साल-2020 में कोटद्वार के मानपुर निवासी सरोज रावत ने एक ऐसी पहल की, जिससे यह एकाधिकार टूट गया। उन्होंने कुछ महिलाओं से चर्चा की कि क्यों न ऐसे रामलीला मंचन की शुरूआत की जाए, जहां सभी पात्र महिलाएं ही हों। बकौल सरोज, कुछ साल पहले पहाड़ में रामलीलाओं के मंचन में कुछ कमी आने लगी थी। ऐसे में उन्होंने रामलीला मंचन की सोची। इसके लिए महिलाओं से बात की। महिलाओं में से ज्यादातर का कहना था कि यह कैसे संभव हो पाएगा? सरोज बताती हैं कि उन्होंने अपनी साथियों से यह सवाल किया कि रामलीला में जब पुरूष महिलाओं के किरदार निभा सकते हैं, तो महिलाएं पुरूष पात्रों की भूमिका क्यों नहीं निभा सकतीं? इस पर शीला थपलियाल, सुनीता असवाल, किरन बिष्ट, शीला बिष्ट, गीता काला, ललिता नेगी आदि कुछेक महिलाओं का साथ मिला। लिहाजा, आनन-फानन में उन्होंने मानपुर कोटद्वार में ‘मातृशक्ति लोककला सांस्कृतिक समिति’ नाम से संस्था की स्थापना कर दी।

मंच निर्देशन से लेकर रामलीला के सभी किरदार निभाती हैं मातृशक्ति लोककला सांस्कृतिक समिति की महिलाएं

सरोज संस्था की संस्थापक और निर्देशक हैं। वे बताती हैं कि निर्देशन से पहले उन्होंने कई लीला रामायणों का अध्ययन किया। फिर उनके आधार पर महिलाओं के मंचन के अनुरूप संवादों-गीतों आदि की रचना की। संस्था की स्थापना के बाद इन चुनिंदा महिलाओं ने रिहर्सल शुरू की। शुरू में लोगों को यह सब देखकर अटपटा सा लगा, लेकिन बाद में आम लोग भी सहयोग करने लगे। इस तरह साल-2020 में दशहरा पूर्व कोटद्वार स्थित प्रगति वेडिंग प्वाइंट में करीब 20 महिलाओं के साथ संस्था ने पहला रामलीला मंचन किया। राम, रावण, हनुमान समेत रामायण के सभी महिला-पुरूष किरदार महिलाओं ने ही निभाए। लोगों ने इस मंचन को काफी सराहा। इसके बाद यह सिलसिला पिछले चार साल में काफी तेजी के साथ आगे बढ़ा। कोटद्वार के अलावा लैंसडौन, दुगड्डा, देहरादून समेत कई जगह वे रामलीला मंचन कर चुकी हैं।

शुरूआत में करती थीं रिहर्सल, अब सभी अपनी भूमिकाओं में हो चुकीं पारंगत

सरोज बताती हैं कि महिलाओं को घर-परिवार के तमाम काम भी निपटाने पड़ते हैं। लिहाजा, उन्होंने रिहर्सल के लिए दोपहर बाद 3-4 बजे का समय चुना। क्योंकि, इस समय ही महिलाएं आमतौर पर थोड़ा फुर्सत पाती है। अब रिहर्सल की ज्यादा आवश्यकता इसलिए नहीं होती, क्येांकि ज्यादातर महिलाएं अपनी भूमिकाओं में पारंगत हो चुकी हैं। वे बताती हैं कि उनकी संस्था की ओर से रामलीला का मंचन अधिकांशतः दिन में ही होता है। लेकिन, लैंसडौन में यह मंचन शाम 7 से रात 10 बजे तक किया गया। रामलीला मंच के पर्दे आदि संस्था स्वयं ले चुकी है, लेकिन ड्रेस आदि अभी किराए पर ही मंगानी पड़ती हैं। वह बताती हैं कि अब हल्द्वानी समेत कुछेक अन्य स्थानों पर भी महिलाएं रामलीला का आयोजन और मंचन कर रही हैं। हालांकि, सबकी शैली अलग-अलग है। मातृशक्ति लोककला सांस्कृतिक समिति की महिलाएं शनिवार से अजबपुर खुर्द स्थित सरस्वती विहार में रामलीला का मंचन करने जा रही हैं।

दूनवासी अजबपुर के सरस्वती विहार में 16 से 25 दिसंबर तक देख सकेंगे ‘महिला रामलीला’

सरस्वती विहार विकास समिति के सचिव व अखिल गढ़वाल सभा के महासचिव गजेंद्र भंडारी का कहना है कि समिति पहली बार महिला रामलीला का मंचन करा रही है। सरस्वती विहार के सी-ब्लॉक में 16 से 25 दिसंबर तक यह आयोजन होगा। दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक मंचित होने वाली इस रामलीला के आयोजन संबंधी व्यवस्थाओं का जिम्मा भी समिति ने मुख्य रूप से कॉलोनी की महिलाओं को ही सौंपा हुआ है।

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