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जोशीमठ भू-धंसावः आठ वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट्स में पुरानी बातों का दोहराव, नया कुछ भी नहीं

देहरादून। भू-धंसाव से प्रभावित चमोली जिले के सीमांत शहर जोशीमठ के बारे में आठ केंद्रीय वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है। अल्मोड़ा निवासी वरिष्ठ पत्रकार व उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी की याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद आखिरकार सरकार को ये रिपोर्ट्स उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) की साइट पर अपलोड करके सार्वजनिक करनी पड़ी। रिपोर्ट्स सार्वजनिक होने के बाद कुछ सवाल जरूर उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा कि रिपोर्ट्स में आखिर नया क्या है?

महीनों तक आखिर क्यों दबाकर रखी गईं रिपोर्ट्स

इन रिपोर्ट्स में आमतौर पर वही सब बातें कही गई हैं, जो इस वर्ष की शुरूआत में बड़े पैमाने पर भू-धंसाव के मामले सामने आने पर तमाम विशेषज्ञों के हवाले से मीडिया  में पहले ही सामने आ चुकी थीं। दूसरे, रिपोर्ट्स में जो बाते कही गई हैं अथवा मोटे तौर पर जो कारण गिनाए गए हैं, वे जोशीमठ भू-धंसाव प्रभावितों से लेकर आम लोग भी कमोबेश पहले से ही जान रहे हैं-समझ रहे हैं। मसलन, जोशीमठ की पहाड़ी संरचना मोरेन आधारित होने के कारण अस्थिर है, वहां भू-जल की अधिकता है, अस्थिर भू-संरचना पर भारी-भरकम शहरी ढांचा खड़ा कर दिया गया है, शहर में प्रभावी ड्रेनेज सिस्टम नहीं है, अलकनंदा के कारण उसमें टो-इरोजन (आधार क्षेत्र में कटाव) हो रहा है आदि। तकरीबन यही सब तो 1976 में गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा कमेटी कह चुकी है। गैर सरकारी स्तर पर कुछ भू-वैज्ञानिक भी अपने अध्ययन में यही बातें इस साल की शुरूआत और पिछले साल भी कह चुके थे। जोशीमठ में बड़े पैमाने पर अचानक भू-धंसाव क्यों हुआ, अनुमानों से इतर उसकी कोई एक ठोस वजह रिपोर्ट्स सामने नहीं रख पाई हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इन रिपोर्ट्स को दबाए-छिपाए क्यों रखा गया? खासकर तब, जब कि इनमें कुछ भी विवादित नहीं था। जोशीमठवासियों और तमाम संगठनों की मांग के बावजूद क्यों इन्हें महीनों तक सार्वजनिक नहीं किया गया?

इन आठ वैज्ञानिक संस्थानों ने किया जोशीमठ पर अध्ययन

जोशीमठ शहर में पिछले साल दिसंबर से इस साल जनवरी-फरवरी तक व्यापक भू-धंसाव हुआ। इससे बड़ी संख्या में आवासीय व व्यावसायिक भवनों, सड़कों, जमीनों में दरारें आ गईं। काफी संख्या में घरों को खाली कराना पड़ा था। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के आंदोलन के बाद हरकत में आई प्रदेश और केंद्र सरकार ने जोशीमठ क्षेत्र में भू-धंसाव की वजह का पता लगाने और भविष्य के लिए सुरक्षात्मक उपायों के बारे में सुझाव देने के लिए आठ वैज्ञानिक संस्थानों को रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, रूड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई), नेशनल हाईड्रोलॉजी इंस्टीट्यूट, केंद्रीय भूजल बोर्ड, ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), आईआईटी रूड़की और एनजीआरआई हैदराबाद ने जोशीमठ पर अध्ययन के बाद गत जून में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग कोे सौंपी।

पूरी तरह खाली होगा हाईरिस्क जोन, आबादी को किया जाएगा पुनर्वासित

राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इन रिपोर्ट्स के आधार पर भविष्य के एक्शन प्लान को शामिल करते हुए ‘पोस्ट डिजास्टर नीड एसेसमेंट रिपोर्ट’ तैयार करके केंद्र को भेजी। 1800 करोड़ रूपये की मांग इसमें केंद्र से जोशीमठ की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए की गई। बताया गया है कि इसमें से करीब 1400 करोड़ देने पर केंद्र ने सैद्धांतिक तौर पर सहमति भी जताई है। जोशीमठ के हाई रिस्क जोन को पूरी तरह खाली कराकर वहां पार्क बनाए जाने की योजना है। क्षेत्र में पहले ही निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जा चुकी है। सिंहधार और आसपास के हाईरिस्क जोन की आबादी को गौचर क्षेत्र में विस्थापित करने की योजना है। हाई रिस्क जोन के साथ ही अन्य क्षेत्रों में स्थित ‘ब्लैक कैटेगरी’ (सर्वाधिक खतरनाक) भवन भी पूरी तरह हटाए जाएंगे, जबकि अन्य श्रेणियों में रेट्रोफिटिंग जैसे विकल्प पर विचार होगा।

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