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भारत ने प्रकृति का अविवेकपूर्ण दोहन नहीं, पूजा की है: चौबे

देहरादून। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) की तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला बुधवार को आरंभ हुई। 24 मार्च तक चलने वाली कार्यशाला ‘वन गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार के माध्यम से पारितंत्र सेवाओं की संवृद्धि और एसएलईएम ज्ञान का प्रसार’ विषय पर केंद्रित है। आईसीएफआरई सभागार में आयोजित कार्यशाला का उद्घाटन केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए किया।
केंद्रीय राज्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सतत भूमि एवं पारितंत्र प्रबंधन (एसएलईएम) पर नई प्रौद्योगिकियों के प्रवर्तन के लिए उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना की जो घोषणा की थी, उसके अनुसरण में आईसीएफआरई ने रोडमैप विकसित किया है। यह रोडमैप भारत के भूमिक्षरण तटस्थता (एलडीएन), सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों पर दिशा-निर्देश और कार्ययोजना उपलब्ध कराएगा। केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा कि भारत एक सनातन संस्कृति का देश है, जो सर्वथा विज्ञान आधारित है। एक राष्ट्र के रूप में हमने कभी प्रकृति का अविवेकपूर्ण दोहन नहीं किया, बल्कि उसकी पूजा की।
आईसीएफआरई के महानिदेशक अरूण सिंह रावत ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि सतत भूमि और पारितंत्र प्रबंधन (स्लेम) के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों, वनों, जैव विविधता का संरक्षण और बंजर भूमि को उर्वरा बनाया जा सकता है।यह स्थानीय लोगों की बढ़ती भागीदारी, जैव विविधता के संरक्षण और पारितंत्र सेवाओं को बनाए रखने के माध्यम से हो सकेगा। उद्घाटन सत्र में अतिरिक्त वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के महानिदेशक वन (वानिकी) बीके सिंह, अतिरिक्त सचिव प्रवीर पांडे, विश्व बैंक के वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ अनुपम जोशी और उपमहानिदेशक (शिक्षा) व निदेशक (अंतर्राष्ट्रीय सहयोग) कंचन देवी मंचासीन रहे। कार्यशाला में भारत के अतिरिक्त, बांग्लादेश, भूटान, जापान, मलेशिया, नेपाल और थाइलैंड के विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, विश्वविद्यालयों, राज्य वन विभागों, विश्व बैंक, विश्व खाद्य संगठन, जीआईजेड, यूएऩडीपी के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।

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