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स्मृति शेष : 79 साल का कुल जीवन, 60 साल ‘फील्ड’ में संघर्ष करते गुजरे ‘फील्ड मार्शल’ के

देहरादून। दिवाकर भट्ट….एक ऐसा नाम, जिससे सुनते ही संघर्ष की स्वत: प्रतिध्वनि होती है। उम्र के 79 साल में से कुल जमा 60 साल ‘फील्ड’ में संघर्ष करते ही गुजरे जनमानस के ‘फील्ड मार्शल’ के। फिर चाहे संघर्ष राज्य प्राप्ति का रहा हो या राज्य को बचाने-संवारने का, गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना का संघर्ष रहा हो या फिर जनविरोधी वन कानून की मुखालिफत का। दिवाकर हर आंदोलन-हर संघर्ष में नेतृत्वकारी भूमिका में रहे….फील्ड मार्शल की तरह। अंतिम साल-महीने और दिन भी संघर्ष में ही गुजरे…बीमारी और मौत से संघर्ष में।

देहरादून के सीएनआई स्कूल में शुरुआती पढ़ाई, 19 साल की उम्र में बन गए आंदोलनकारी

टिहरी रियासत की बढ़ियारगढ़ पट्टी के सुपार गांव में 1 अगस्त 1946 को शारदा देवी और भोला दत्त भट्ट के घर जन्मे दिवाकर की प्राइमरी शिक्षा देहरादून के परेड मैदान स्थित प्राथमिक विद्यालय और हाईस्कूल सीएनआई स्कूल पलटन बाजार से हुई। हरिद्वार के कनखल से इंटरमीडिएट करने के बाद दिवाकर ने श्रीनगर गढ़वाल से आईटीआई किया। आईटीआई करने के दौरान ही 1965 में उन्होंने महज 19 साल की उम्र में पहले-पहल जन संघर्षों के ‘फील्ड’ में कदम रखा। वे पौड़ी में राज्य निर्माण की मांग को लेकर अनशन पर बैठे तत्कालीन सांसद प्रताप सिंह नेगी के समर्थन में धरना-प्रदर्शन में शामिल हुए। यह ऐसा दौर था जब सीधे-सादे पहाड़वासी उपेक्षा और उपहास के कारण अपनी अलग सामाजिक- सांस्कृतिक व राजनैतिक पहचान के लिए छटपटा रहे थे। इसी छटपटाहट को संघर्ष का रूप देने के लिए खुद को पूरी तरह झोंक दिया दिवाकर ने।

हरिद्वार तरुण हिमालय बनी कर्मभूमि, बीएचईएल में नौकरी भी की-श्रमिकों का नेतृत्व भी किया

आईटीआई करने के दौरान ही दिवाकर पहले ऋषिकेश आईडीपीएल और फिर साल-1969 में हरिद्वार बीएचईएल में नियुक्त हुए और वहां की ट्रेड यूनियन के युवावस्था में ही सचिव चुन लिए गए। हरिद्वार में रह रहे पर्वतीय समाज को सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से संगठित करने के प्रयासों के तहत उन्होंने बीएचईएल रानीपुर में ‘तरुण हिमालय’ नाम से संस्था की स्थापना की। वे अपने अंतिम समय तक तरुण हिमालय में ही रहे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के पूरे दौर में तरुण हिमालय परिसर आंदोलनकारियों की बैठकों और रणनीति का केंद्र रहा। साल-1977 में टिहरी के तत्कालीन सांसद त्रेपन सिंह नेगी की अध्यक्षता में स्थापित ‘उत्तराखंड राज्य परिषद’ की युवा इकाई का अध्यक्ष दिवाकर को चुना गया। परिषद के आह्वान पर दिल्ली में रैली समेत कई आंदोलनात्मक गतिविधियां संचालित की गईं। राज्य की मांग के समर्थन में उन्होंने दिल्ली तक पदयात्रा भी की।

सड़क निर्माण में बाधक वन अधिनियम के विरोध में काटे पेड़-उक्रांद के वरिष्ठ नेताओं संग हुई जेल

दिवाकर भट्ट उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्यों में थे। 24-25 जुलाई 1979 को मसूरी के अनुपम होटल में दल की स्थापना के लिए आयोजित अधिवेशन में दिवाकर को केंद्रीय उपाध्यक्ष चुना गया। उक्रांद के बैनरतले 1994 से पहले तक भी कई धरना-प्रदर्शन, दिल्ली रैली, बंद-चक्का जाम किए गए। इससे पूर्व दिवाकर 1970 के दशक की शुरुआत में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए हुए आंदोलन से भी जुड़े रहे। पहाड़ी क्षेत्र में वन अधिनयम के कारण तमाम सड़कों का निर्माण कार्य रुका तो 1988 में दिवाकर भट्ट ने उक्रांद के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर पेड़ काटते हुए विरोध दर्ज कराया। इस पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

नदी के बीच से पहाड़ की चोटी तक किया आंदोलनका नेतृत्व, अनशन से झुकाया केंद्र सरकार को

साल-1994 में 2 अगस्त को उक्रांद के शीर्ष नेता इंद्रमणि बडोनी अन्य बुजुर्ग आंदोलनकारियों के साथ पौड़ी में अनशन पर बैठे। इस अनशन के पीछे भी रणनीति दिवाकर भट्ट की ही थी। अगले साल-1995 में दिवाकर के निर्देशन में ही अलकनंदा नदी के बीच श्रीयंत्र टापू पर अनशन हुआ था, जिसमें पुलिसिया बर्बरता के कारण दो आंदोलनकारी शहीद हो गए। आंदोलन को निर्णायक रूप देने के लिए दिवाकर ने दिसंबर-1995 में टिहरी जिले की सबसे दुर्गम चोटियों में से एक खैट पर्वत पर खुद एक माह लंबा अनशन किया। इस अनशन के बाद ही तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने जनवरी-1996 में वार्ता के लिए उक्रांद समेत आंदोलनकारी संगठनों को आमंत्रित किया। दिवाकर स्वयं भी अनशन जारी रखते हुए दिल्ली वार्ता में शामिल हुए। यह दिवाकर के संघर्ष के प्रति आंदोलनकारी युवाओं की दीवानगी ही थी कि जब जनता के फील्ड मार्शल खैट पर्वत पर अनशन कर रहे थे, तो सशस्त्र युवाओं की टीम दिन रात वहां स्वेच्छा से उनकी सुरक्षा के लिए पहरे पर रही। फरवरी-1996 में उन्होंने पुन: अनशन किया। इस बार अनशन पर बैठने के लिए चुना गया पौड़ी को।

भाजपा-उक्रांद गठबंधन सरकार में संभाले कई अहम मंत्रालय, भू-कानून सख्त कराने में रही प्रमुख भूमिका

राज्य निर्माण के बाद साल-2007 में बनी भाजपा-उक्रांद गठबंधन सरकार में वे राजस्व, खाद्य आपूर्ति और आपदा प्रबंधन समेत 14 वजनदार विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे। बाहरी लोगों के लिए तिवारी सरकार के 2003 के भू-कानून में 500 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की छूट को घटा कर 250 वर्ग मीटर करने समेत कई सख्त प्रावधान बतौर राजस्व मंत्री उन्होंने करवाए। इसके अलावा पटवारी व्यवस्था को बेहतर बनाने समेत कई सुधार भी उनके स्तर से किए गए। वे 1990 के दशक में टिहरी जिला पंचायत के सदस्य, 1980 के दशक में कीर्तिनगर के ब्लॉक प्रमुख और अविभाजित व विभाजित उत्तराखंड क्रांतिदल के अलग-अलग अवधि में अध्यक्ष भी रहे। राज्य बनने के बाद साल 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में वे देवप्रयाग से मैदान में थे, लेकिन सफलता नहीं मिली। उनकी हार का सदमा बर्दाश्त न कर पाने पर उनकी पत्नी इंदु भट्ट ने मतगणना परिणाम सुनने के बाद आत्महत्या कर ली थी। साल-2007 दिवाकर पुनः देवप्रयाग से चुनाव लड़े और विधायक चुने गए।

मुंबई में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने मुख्य समारोह में मुख्य अतिथि बनाकर दिया था सम्मान

दिवाकर भट्ट के जीवन और संघर्ष पर राज्य आंदोलनकारी व लेखक जगमोहन बिष्ट ने ‘उत्तराखंड राज्य आंदोलन का फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। कुछ माह पूर्व उत्तरांचल प्रेस क्लब में उक्रांद की ओर से आयोजित समारोह में दिवाकर भट्ट की मौजूदगी में प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने इस पुस्तक का विमोचन किया था। यह पुस्तक दिवाकर के जीवन के कई ऐसे पहलुओं को सामने लाती है, जिनसे ज्यादातर लोग वाकिफ नहीं हैं। मसलन, 90 के दशक में शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के साथ हुई बेहद खास मुलाकात और उनका आतिथ्य। मुंबई में दशकों से उत्तराखंड मूल की काफी बड़ी आबादी रहती है। राज्य आंदोलन में मुंबई के प्रवासी उत्तराखण्डियों की भी भागीदारी रही। पुस्तक बताती है कि 2 अक्तूबर 1994 को हुए मुजफ्फरनगर कांड से आक्रोशित दिवाकर मुंबई पहुंचे। वहां 10 अक्तूबर को प्रवासी उत्तराखण्डियों से बैठक हुई। कुछ रणनीति बनी। इसके बाद वे बाल ठाकरे से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। उन्हें उत्तराखंड वासियों के साथ हुए सरकारी जुल्म की दास्तां सुनाई। बाल ठाकरे ने उत्तराखण्डियों के संघर्ष में हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। साथ ही 14 अक्तूबर 1994 को विजयादशमी पर हुए शिवसेना के मुख्य समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सम्मान दिया।

बडोनी की दी फील्ड मार्शल की उपाधि को जन मान्यता मिली तो बन गई स्थाई पहचान

साल-1993 में श्रीनगर में उक्रांद का द्विवार्षिक अधिवेशन हुआ। इसमें काशी सिंह ऐरी दल के केंद्रीय अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग की भावनाओं को देखते हुए उक्रांद के शीर्ष नेता इंद्रमणि बडोनी ने राज्य आंदोलन की अगुआई के लिए दिवाकर को दल का ‘फील्ड मार्शल’ घोषित किया। राज्य आंदोलन के दौरान दल के फील्ड मार्शल को जन के फील्ड मार्शल के तौर पर जन मान्यता मिली। यह उपाधि उनकी स्थाई पहचान बन गई।


(फोटो – राज्य आंदोलनकारी रामलाल खंडूरी व प्रदीप कुकरेती के फेसबुक पेज से साभार)

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