राज्य आंदोलनकारी मंच की बेहतरीन पहल, उत्तराखंड आंदोलन के पुराने योद्धाओं को कर रहे घर-घर जाकर सम्मानित
देहरादून। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने उत्तराखंड राज्य के 24वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में अभिनव पहल की है। मंच की यह पहल अब तक की सभी सरकारों को भी आईना दिखा रही है, जिन्होंने राज्य आंदोलन की बुनियाद रहे योद्धाओं को पूरी तरह नजरंदाज किया और कर रही हैं। मंच के पदाधिकारी उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अप्रतिम योगदान देने वाले ऐसे योद्धाओं को पिछले दो दिन से उनके घर जाकर सम्मानित कर रहे हैं, जो वृद्धावस्था अथवा अस्वस्थता के कारण वर्तमान में कहीं भी आने-जाने में असमर्थ हैं।
उक्रांद के जन्म के साथ ही 80 के दशक से पृथक राज्य के लिए समर्पित और संघर्षशील रहे बीडी रतूड़ी
सोमवार को प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन नेगी के नेतृत्व में मंच के प्रतिनिधिमंडल ने दूसरे दिन भी वयोवृद्ध व अस्वस्थ आंदोलनकारियों को सम्मानित करने का क्रम जारी रखा। इसके तहत वे अजबपुर माता मंदिर मार्ग स्थित 76 वर्षीय राज्य आंदोलनकारी बीडी रतूड़ी के घर पहुंचे और उन्हें माल्यार्पण कर व शॉल ओढ़ाने के साथ ही गौरव सेनानी सम्मान स्वरूप प्रतीक चिह्न भेंट किया। रतूड़ी ने इस मुहिम के लिए मंच पदाधिकारियों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि आंदोलनकारियों और शहीदों के सपनों के अनुरूप राज्य को बनाने के लिए अभी और संघर्ष करना होगा। उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में संरक्षक बीडी रतूड़ी 1994 में गठित उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति की केंद्रीय कमेटी के सदस्य रह चुके हैं। जुलाई-1979 में उक्रांद के पहले देहरादून नगर अध्यक्ष चुने जाने के बाद से ही वे 1980 और 90 के दशक में उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन से निरंतर जुड़े रहे। देहरादून से दिल्ली तक असंख्य बार धरना-प्रदर्शन, बंद-चक्का जाम और जेल भरो जैसी गतिविधियों में वे नेतृत्वकारी भूमिका में रहे।
पैर खराब होने केे बावजूद बब्बर गुरुंग ने दिल्ली तक की थी पदयात्रा, जंतर-मंतर पर बैठे थे अनशन पर
मंच कार्यकर्ताओं ने पृथक उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने वाले 86 वर्षीय गांधीवादी नेता बब्बर गुरूंग को उनके गढ़ी-कैंट के शेरबाग स्थित आवास पर जाकर सम्मानित किया। माल्यार्पण के साथ ही उन्हें गौरव सैनानी सम्मान स्वरूप स्मृति चिह्न भेंट किया गया। बब्बर गुरूंग उत्तराखंड राज्य आंदोलन का प्रमुख गोरखा चेहरा भी रहे हैं। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संचालक मंडल में शामिल रहे बब्बर ने आंदोलन की हर छोटी-बड़ी गतिविधि में निरंतर भागीदारी करते हुए नेतृत्व दिया। उनकी पत्नी शकुन गुरूंग भी राज्य आंदोलन में लगातार जुड़ी रहीं। कैंसर से पीड़ित होने के कारण शकुन का कुछ माह पूर्व ही निधन हो गया। पूर्व सैनिक बब्बर गुरूंग ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में गोली लगने से एक पैर खराब होने के बावजूद वर्ष-1995 में स्व. चंद्रमणि नौटियाल के साथ देहरादून से दिल्ली तक पदयात्रा की और जंतर-मंतर पर लंबा अनशन किया था। राज्य स्थापना से पहले नेपाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करवाने और शहीद दुर्गामल्ल की प्रतिमा संसद में स्थापित करवाने की मुहिम का भी उन्होंने नेतृत्व किया।
मसूरी कांड में 10 साल तक संगीन धाराओं में सीबीआई के मुकदमे झेले सुभाषिनी बर्त्वाल ने
मंच के प्रतिनिधिमंडल ने राजपुर रोड पर चंद्रलोक कॉलोनी स्थित आवास पर मसूरी की प्रखर महिला आंदोलनकारी नेता सुभाषिनी बर्त्वाल को भी माल्यार्पण कर, शॉल व स्मृति चिह्न भेंटकर गौरव सेनानी सम्मान प्रदान किया। 67 वर्षीय सुभाषिनी बर्त्वाल पिछले लंबे समय से गंभीर अस्वस्थता के कारण अधिकतर बेड पर ही हैं। मसूरी में पहले दिन से ही उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व करने वालों में शामिल रहीं सुभाषिनी को 2 सितंबर 1994 को हुए मसूरी गोलीकांड के बाद पुलिस और फिर सीबीआई ने अन्य 13 आंदोलनकारी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया था। उन पर भी अन्य 13 की ही तरह हत्या व हत्या का प्रयास समेत 14 संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। 10 साल मुकदमा झेलने के बाद उन समेत सभी 14 आंदोलनकारी बरी हुए। मंच की ओर से सम्मानित होने पर वे काफी भावुक हुईं और इस मुहिम की सराहना की।
अब कैंसर पीड़ित संदीप पटवाल ने तब बतौर छात्रनेता की थी राज्य आंदोलन में सक्रिय भागीदारी
इससे पहले रविवार को मंच का प्रतिनिधिमंडल सर्वप्रथम पूर्व छात्र नेता व तीन बार के पार्षद 53 वर्षीय संदीप पटवाल के साकेत कॉलोनी राजपुर रोड स्थित आवास पहुंचा। आंदोलनकारियों ने पटवाल का माल्यार्पण कर, शॉल ओढ़ाकर और गौरव सेनानी सम्मान के तौर पर प्रतीक चिह्न भेंटकर राज्य आंदोलन में उनके योगदान के प्रति सम्मान व्यक्त किया। संदीप पटवाल ने जुलाई-1994 में शुरू हुए 26 फीसद ओबीसी आरक्षण विरोधी आंदोलन से बतौर छात्र नेता भागीदारी शुरू की और उत्तराखंड आंदोलन में लगातार सक्रिय रहे। राज्य गठन के बाद संदीप पटवाल तीन बार आर्यनगर क्षेत्र से पार्षद भी रहे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कैंसर पीड़ित होने के कारण वे सार्वजनिक गतिविधियों से दूर हैं।
पूर्व सैनिक एमएस गुसाईं व मोहन सिंह रावत की रही अहम भूमिका
इसके बाद प्रतिनिधिमंडल 83 वर्षीय आंदोलनकारी ऑनररी कैप्टन मदन सिंह (एमएस) गुसाईं व 82 वर्षीय ऑनररी कैप्टन मोहन सिंह (एमएस) रावत के घर पहुंचा। दोनों वयोवृद्ध आंदोलनकारी पूर्व सैनिकों का माल्यार्पण करने के साथ ही मंच के प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें शॉल ओढ़ाकर और स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया। दोनों ने राज्य आंदोलन के पूरे दौर में पूर्व सैनिकों के साथ नेतृत्वकारी भूमिका में भागीदारी की थी। जेल भरो आंदोलन हो या बंद-चक्का जाम या फिर ‘राज्य नही ंतो चुनाव नहीं..’ के नारे के साथ चुनाव बहिष्कार, राज्य आंदोलन की हर गतिविधि में वे निरंतर भागीदार रहे। मुजफ्फरनगर कांड के बाद उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक स्व. इंद्रमणि बडोनी के निर्देश पर सुरेंद्र कुमार के नेतृत्व में केंद्रीय स्तर पर गठित संघर्ष समिति की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी (तथ्यान्वेषी समिति) में भी वे सदस्य के तौर पर जुड़े रहे।
शिक्षक नेत्री के तौर पर राज्य आंदोलन में सक्रिय रहीं सुशीला ध्यानी, वाहिनी का भी किया नेतृत्व
मंच के सदस्यों ने वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी सुशीला ध्यानी के आवास पर जाकर उन्हें शाल ओढ़ाकर व माल्यार्पण कर श्गौरव सेनानी समानश् प्रदान किया। शिक्षक नेत्री रहीं सुशीला ध्यानी सेवारत रहने के दौरान राज्य आंदोलन में शिक्षक वर्ग का नेतृत्व करने वालों में शामिल रहीं। राज्य गठन के बाद भी वे कौशल्या डबराल संघर्ष वाहिनी का नेतृत्व करते हुए कुछ वर्ष पूर्व तक तमाम ज्वलंत मुद्दों पर मुखर रहीं। 1994-96 के दौर में उत्तराखंड राज्य आंदोलन की प्रखर नेता रहीं कौशल्या डबराल, सुशीला ध्यानी की बड़ी बहन थीं। 76 वर्षीय सुशीला ध्यानी मंच की ओर से सम्मान मिलने पर काफी भावुक हुईं और आंदोलनकारी मंच को इस मुहिम के लिए बधाई दी।
पछवादून में आंदोलनकारियों को लामबंद करने वालों में शामिल थे मंशाराम मालियान
पूर्व सैनिकों के साथ ही पछवादून, खासकर प्रेमनगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में आंदोलनकारियों को लामबंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 88 वर्षीय मंशाराम मालियान को भी मंच कार्यकर्ताओं ने उनके घर पहुंचकर सम्मानित किया। उम्रदराज हो चुके पूर्व सैनिक मंशाराम सम्मान पाकर काफी भावुक हो गए। उन्होंने कहा की राज्य आंदोलन के पुराने लोगों को याद कर आंदोलनकारी मंच पुनीत कार्य कर रहा है।
पुराने आंदोलनकारियों को सम्मानित करने की इस मुहिम में आंदोलनकारी मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी के साथ ही प्रदेश उपाध्यक्ष सतेंद्र भंडारी, सरंक्षक केशव उनियाल, प्रदेश महासचिव रामलाल खंडूड़ी, प्रदेश प्रवक्ता व जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती, राकेश बछेती, सुबोध सेमवाल, सुशील कुमार, सुनील बहुगुणा, मंगल सिंह व मधु क्षेत्री आदि शामिल रहे।