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हरियाली की ‘हत्या’ के विरोध में उमड़ पड़ा दून, मार्च निकालकर सरकार को चेताया- बस! अब और बर्दाश्त नहीं

देहरादून। दूनघाटी कभी अपनी हरियाली, खुशगवार आबोहवा, नहरों और लीची के बागों के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध रही है। लेकिन, अब इस शहर की यह पहचान लुप्त हो चुकी है। नहरें खत्म हुईं। लीची के बाग समेत हरियाली खत्म कर दी गई। खुशगवार आबोहवा में प्रदूषण का जहर इस कदर घुल चुका है कि देहरादून की गिनती देश के प्रदूषित शहरों में होने लगी है। इन्हीं सब से बेचैन हो रहे शहरवासियों का सब्र आए दिन हो रहे पेड़ों के कत्ल के बहाने रविवार को इस कदर टूटा कि सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। दिलाराम चौक से लेकर हाथीबड़कला चौकी के नजदीक तक मार्च निकालकर दूनवासियों ने सरकार को चेता दिया कि बस…बहुत हुआ। पेड़ों पर अब और आरियां नहीं चलने दी जाएंगी। हरियाली की हत्या अब बर्दाश्त नहीं होगी।

पिछले डेढ़-दो महीने से पेड़ों के कटान का मुद्दा देहरादून में विमर्श के केंद्र में है। खलंगा में करीब दो हजार पेड़ों को काटने का प्रस्ताव था। वहां से शुरू हुआ विरोध सड़क से सोशल मीडिया तक लगातार चल रहा। इसी बीच, यह खबर सामने आई कि दिलाराम बाजार से मुख्यमंत्री आवास तक न्यू कैंट रोड पर करीब दो सौ पेड़ सड़क को चौड़ा करने के लिए काटे जाने हैं। इसने लोगों के आक्रोश को और हवा दी। आग में घी का काम किया इस माह चढ़ते पारे ने। 43 डिग्री पार पहुंचे पारे ने शहरवासियों को बेहाल कर दिया। इसके चलते देहरादून सिटीजन फोरम ने सोशल मीडिया के माध्यम से दिलाराम से सेंट्रियो मॉल (हाथीबड़कला) मार्च का आह्वान किया। तीन दिन पहले प्रेस कांफ्रेंस करके भी फोरम ने लोगों से आवाज उठाने का आह्वान किया। नतीजा यह हुआ कि रविवार सुबह साढ़े 6 बजे ही सैकड़ों लोग दिलाराम चौक पर आ जुटे। सुबह 7 बजे तक यह संख्या डेढ़-दो हजार के पार पहुंच गई  

सिर्फ 15 साल में काटे गए 23 लाख पेड़, अब दून से की जाए ग्रीन पॉलिटिक्स की शुरुआत : अनूप नौटियाल

यह हालिया वर्षों में पहली बार हुआ जब पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर इतनी बड़ी संख्या में लोग स्वत:स्फूर्त आ जुटे। इनमें आम-ओ-खास भी थे, तो बच्चे और बुजुर्ग भी। इनमें युवा और छात्र भी शामिल थे, तो सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार भी। लगभग पहली बार शहर में किसी मुद्दे पर आंदोलनों से दूर रहने वाले ‘इलीट’ क्लास को भी सड़कों पर आंदोलित देखा गया और वह भी अच्छी-खासी तादाद में। दिलाराम बाजार से आरंभ होकर सेंट्रियो मॉल के बाहर पहुंचकर मार्च सभा में तब्दील हो गया, जिसे संबोधित करते हुए एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले डेढ़ दशक में उत्तराखंड के भीतर 14 हजार हेक्टेयर जंगल का डायवर्जन हुआ है। 23 लाख हरे पेड़ इस दौरान काटे गए हैं। यानी, औसतन हर दिन 300-400 पेड़ों का कटान राज्य में हो रहा है। नौटियाल ने कहा कि देहरादून का तापमान 43 डिग्री पार हो गया, लेकिन सरकार या सिस्टम के मुंह से एक शब्द नहीं निकला। सरकारों को रेत-बजरी, खनन-सीमेंट से ही सरोकार है। अब वक्त आ गया है कि इस राजनीति को बदला जाए। देहरादून से हरित राजनीति (ग्रीन पॉलिटिक्स) की शुरुआत होनी चाहिए।  

वरिष्ठ पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि सरकार ने जन-दबाव में खलंगा और न्यू कैंट रोड पर पेड़ काटने के फैसले को वापस लिया है। लेकिन, अभी विकास कार्यों के नाम पर कई हजार पेड़ कटने की लाइन में हैं। इसलिए, देहरादून की हरियाली को बचाने के लिए अभी एकजुट होकर लंबी लड़ाई लड़े जाने की जरूरत है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन मेंदीरत्ता ने कहा किा कुछ वर्ष पहले तक देहरादून शहर का स्वरूप बेहद खूबसूरत था। यहां गर्मी का अहसास तक नहीं होता था। लेकिन, आज विकास के नाम पर पेड़ों को काटकर बड़े-बड़े माल और बहुमंजिला इमारतें बनाए जाने से शहर का नुकसान हुआ है। बिजली-पानी, सीवर-सड़क जाम जैसी समस्याओं का दूनवासियों को सामना करना पड़ रहा है। मेंदीरत्ता ने न्यू कैंट रोड जैसी छोटी सड़क पर सेंट्रियो जैसे विशाल मॉल को बनाने की अनुमति मिलने पर भी सवाल उठाए।  

सभा में ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि भले ही मुख्यमंत्री ने न्यू कैंट रोड पर पेड़ काटने से इनकार कर दिया हो, लेकिन अभी झाझरा-आशारोड़ी-पौंटा बाइपास बनने में करीब चालीस हजार पेड़ काटे जाने प्रस्तावित हैं। इस मौके पर सतीश धौलाखंडी व जयदीप सकलानी के नेतृत्व में जनगीत गाए गए। इरा चौहान, विजय भट्ट, तन्मय ममगाईं, जया, रुचि, राधा चटर्जी समेत कई लोगों ने विचार व्यक्त किए। विभिन्न ग्रुपों के युवाओं ने इस दौरान पर्यावरण जागरूकता के संबंध में नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किए। ’

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