रिस्पना नदी में शुरू हुआ ध्वस्तीकरण अभियान, भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच अवैध निर्माणों को मटियामेट कर रहीं जेसीबी
देहरादून। रिस्पना नदी में साल-2016 के बाद हुए अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के लिए सोमवार सुबह भरी पुलिस बल की मौजूदगी में बड़ा अभियान शुरू किया गया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों पर अमल करते हुए नगर निगम ने जिला प्रशासन और पुलिस के साथ यह अभियान आरंभ किया है।
एनजीटी के आदेश पर हो रही कार्रवाई, साल-2016 के बाद के कुल 524 अवैध निर्माण किए गए हैं चिह्नित
रिस्पना नदी को अवैध कब्जों से मुक्त कराने के लिए एनजीटी ने आदेश दिए हैं। 30 जून तक नगर निगम को एटीआर (एक्शन टेकन रिपोर्ट) एनजीटी को सौंपनी है। साल-2016 के बाद हुए अतिक्रमण इसके तहत चिह्नित किए गए हैं। ऐसे कुल 524 अवैध निर्माण चिह्नित किए गए हैं, जो ध्वस्त किए जाने हैं। इनमें सर्वाधिक 412 निर्माण मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) की रिवर फ्रंट की जमीन पर और 89 देहरादून नगर निगम की भूमि पर पाए गए हैं। 11 निर्माण मसूरी नगर पालिका के क्षेत्र में और 12 नॉन जेडए लैंड पर हैं। ये सभी अवैध कब्जे साल-2016 के बाद हुए हैं।
अधोईवाला से कठबंगला की ओर शुरू हुआ नगर निगम, प्रशासन और पुलिस का साझा अभियान
इन अवैध कज्जों को हटाने के लिए ही सोमवार सुबह करीब 8:30 बजे से ध्वस्तीकरण अभियान शुरू किया गया। एसडीएम (सदर) हरी गिरि और उपनगर आयुक्त गोपाल राम बिनवाल की मौजूदगी में रायपुर रोड चूनाभट्ठा (अधोईवाला) क्षेत्र से कंडोली-काठबंगला की दिशा में तीन जेसीबी ध्वस्तीकरण में जुटीं। कई निर्माण तो पुश्ते के पार नदी के बहाव क्षेत्र में बने मिले, जिन्हे ढहा दिया गया। इस दौरान एकत्र हुए बस्तीवासियों को पुलिस ने दूर खदेड़ दिया। भारी पुलिस बल की मौजूदगी के कारण शुरुआती घंटों में कोई अभियान के विरोध की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
साल-2018 में त्रिवेंद्र रावत सरकार लाई थी रिस्पना का ‘गला घोंटने’ वाला अध्यादेश, नदी के पुनर्जीवन का भी हुआ ‘ड्रामा’
दरअसल, रिस्पना नदी में पिछले दो-ढाई दशक में राजपुर कठबंगला क्षेत्र से मोथरोवाला तक कई हजार अवैध निर्माण हो चुके हैं। दोनों और बस्तियां बसा दिए जाने के साथ ही व्यवसायिक व सरकारी निर्माण भी खूब हुए हैं। साल-2018 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए रिस्पना का गला घोंटने वाली अवैध बस्तियों को ध्वस्तीकरण से बचाने के लिए तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार आनन-फानन में अध्यादेश ले आई थी। इसके जरिए साल-2016 तक की अवैध बस्तियों को सुरक्षित कर लिया गया। यह अलग बात है कि इसके कुछ ही समय बाद त्रिवेंद्र सरकार ने रिस्पना को पुनर्जीवित करने के नाम पर पौधरोपण अभियान का ढोल भी खूब पीटा था, लेकिन यह अभियान सिर्फ अखबारों की सुर्खियां और ‘ड्रामा’ भर ही साबित हुआ। न रिस्पना पुनर्जीवित हुई और न त्रिवेंद्र सरकार ने तब रिस्पना का ‘गला घोटने वाला अध्यादेश’ ही वापस लिया।
सुसवा नदी में मिलन के जरिए गंगा की सहायक रिस्पना नदी का वर्तमान में हाल यह है कि जहां 1974 में हरिद्वार रोड पर 147 मीटर लंबे पुल निर्माण के वक्त उसका प्रवाह (बहाव) क्षेत्र 124 मीटर चौड़ा था, वहीं अब यह विभिन्न स्थानों पर सिकुड़ कर मात्र 15-20 मीटर से लेकर अधिकतम 40-50 मीटर तक ही रह गया है। इसमें भी कहीं नदी के बीचो-बीच होटल और व्यवसायिक कॉपलेक्स बनाए जा रहे, तो कहीं नदी को व्यवसायिक वाहनों का अड्डा बना दिया गया है। सरकार ने शहरभर का सीवर भी इसी नदी में बनाए होल में डाल दिया है।