धरोहर पर संकटः उधर ‘सैम बहादुर’ पर्दे पर आए, इधर ‘उनके’ स्कूल में पहुंचा बंदी का आदेश
देहरादून। ‘सैम बहादुर’ शब्द सुनते ही किसी के भी जेहन में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व उभर आता है। लंबी कद-काठी। चेहरे पर रूआबदार मूछें। तन पर सैन्य वर्दी। हाथ में बेंत। इत्तेफाक देखिए। एक तरफ सैम बहादुर के जीवन पर फिल्म रिलीज होती है। दूसरी तरफ, करीब-करीब ठीक उसी वक्त एक आदेश आता है। आदेश ऐसा कि अमल हुआ तो देहरादून कैंट में ‘सैम बहादुर’ के हाथों स्थापित ‘धरोहर’ हमेशा के लिए मिट जाएगी।
सैम मानेकशॉ ने रखी थी 58 जीटीसी जूनियर हाईस्कूल की आधारशिला
देहरादून कैंट में शहीद मेख गुरूंग मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के ठीक सामने है ‘58 जीटीसी जूनियर हाईस्कूल।’ इस दो मंजिली स्कूल बिल्डिंग या कहें, स्कूल की आधारशिला 11 अक्तूबर 1966 को इस्टर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एसएचएफजे मानेकशॉ (सैम बहादुर) ने रखी थी। तब देहरादून में 58 जीटीसी (गोर्खा ट्रेनिंग सेंटर), 39 जीआर और 11 जीआर के सेंटर थे। इनमें रह रहे जवानों और अन्य कर्मियों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए 58 जीटीसी ने उक्त स्कूल की स्थापना की थी। पिछले 36 वर्षों से इस स्कूल में सेवाएं दे रहे मौजूदा प्रधानाध्यापक अनिल कुमार बताते हैं कि स्कूल 1952 से बैरकों में चल रहा था। लेकिन, 1966 में इसे अपनी बिल्डिंग में और विधिवत शुरू करने के लिए ही 58 जीटीसी ने मौजूदा स्थान पर इसकी स्थापना की, जिसकी आधारशिला सैम मानेकशॉ ने रखी। मानेकशॉ स्वयं भी गोरखा राइफल का हिस्सा रहे हैं।
कभी 1500 बच्चे पढ़ते थे इस प्रतिष्ठित स्कूल में, आज सिर्फ 30
कैंट क्षेत्र में ही नहीं, देहरादून शहर में भी एक समय 58 जीटीसी जूनियर हाईस्कूल की काफी ख्याति रही है। कक्षा-1 से 8 तक के इस स्कूल में शुरूआती दौर में 1200 से 1500 तक बच्चे पढ़ा करते थे। बकौल अनिल कुमार, जब वे यहां नियुक्त हुए, तब भी 800-900 बच्चे हुआ करते थे। उस समय 40-42 का स्टाफ इस स्कूल में था। लेकिन, अब महज 30 बच्चे ही इस स्कूल में हैं। विद्यालय में इस समय प्रधानाध्यापक अनिल कुमार के साथ ही शिक्षक महावीर रावत और शिक्षिका विनीता तोपवाल तैनात हैं। शिक्षक रावत बताते हैं कि 30 बच्चों में से कक्षा-6 से 8 तक में वर्तमान में 13 और कक्षा-1 से 5 तक कुल 17 बच्चे हैं। वह बताते हैं कि सभी बच्चे निर्धन और अनुसूचित परिवारों से हैं। ऐसे परिवारों से, जो सैन्य अधिकारियों के घरों में काम कर रहे हैं। ऐसे में अब इस स्कूल को बंद करने की स्थिति में इन बच्चों के लिए आगे पढ़ाई जारी रख पाना काफी मुश्किल होगा।
यूनिट से प्रधानाध्यापक को मिला अगले सत्र से स्कूल बंद करने का पत्र
प्रधानाध्यापक अनिल कुमार का कहना है कि दो-एक दिन पहले ही 58 जीटीसी की यहां घंघोड़ा स्थित यूनिट से पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें अगले सत्र (2024-25) से स्कूल बंद किए जाने की सूचना देते हुए एडमिशन न करने को कहा गया है। वह बताते हैं कि विद्यालय शिक्षा विभाग से अनुदानित है। शिक्षकों का वेतन विभाग से मिलता है, लेकिन विद्यालय का प्रबंधन 58 जीटीसी की यूनिट के पास ही है।
वह कहते हैं कि इस विद्यालय का महत्व सैम मानेकशॉ के कारण एक धरोहर के तौर पर तो है ही, साथ ही यह कैंट क्षेत्र में शिक्षा का प्रमुख केंद्र भी रहा है। जब तक गोरखा रेजिमेंट का ट्रेनिंग सेंटर यहां रहा, स्कूल भी गुलजार रहा। लेकिन, 1970 के दशक में ट्रेनिंग सेंटर यहां से शिलांग शिफ्ट होने के बाद छात्र संख्या पर धीरे-धीरे असर पड़ने लगा। पिछले पांच-सात साल में यह काफी कम हो गई। वह कहते हैं कि वर्षों से मेंटेनेंस के लिए धनराशि स्वीकृत न होने के कारण स्कूल बिल्डिंग की दशा भी दिनों-दिन खराब हो रही है।
स्कूल की बेशकीमती जमीन के अन्य उपयोग के लिए लगी हैं नजरें
स्कूल बंदी कराए जाने के पीछे सूत्र इसकी बेशकीमती जमीन को भी वजह बता रहे हैं। बताया जा रहा है कि राज्य सरकार मैं बैठे कुछेक लोग भी किसी न किसी तरह इस जमीन को लेने की कोशिश में हैं, ताकि इसका इस्तेमाल किसी अन्य कार्य के लिए किया जा सके। पूर्व में उपनल मुख्यालय भी यहां बनाने की योजना को लेकर भी चर्चा तेज हुई। सूत्रों के अनुसार, कैंट बोर्ड और सब एरिया भी 58 जीटीसी की यूनिट से उक्त जमीन को लेने की कोशिश कर रहे हैं। बताया गया है कि कुछ अर्सा पहले कैंट बोर्ड ने इस बिल्डिंग को गिरासू बताते हुए खाली करने के लिए भी कहा, लेकिन जब उनसे टेक्निकल सर्वे की रिपोर्ट की मांग की गई, तो कोई जवाब नहीं मिला और न आगे फिर कोई कार्रवाई हुई। बहरहाल, सैम मानेकशॉ की यह धरोहर बच पाती है या मिटा दी जाती है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। हालांकि, सैम की स्मृतियों से जुड़ी एक और धरोहर दून के गढ़ी-कैंट में गोर्खाली सुधार सभा परिसर में भी स्थित है।
उत्तराखंड से रहा है फील्ड मार्शल मानेकशॉ का संबंध
देश के पहले फील्ड मार्शल और 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाक युद्ध के नायक सैम हॉरमुसजी फेमजी जमशेदजी मानेकशॉ (सैम मानेकशॉ) का उत्तराखंड क्षेत्र से कई मायनों में जुड़ाव रहा। साल-1932 में देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना के बाद 40 कैडेट्स के पहले बैच के वे सदस्य रहे। उनकी शिक्षा का एक हिस्सा नैनीताल के प्रसिद्ध शेरवुड स्कूल में भी पूरा हुआ। आजादी से पहले 12वीं फरंटियर फोर्स रेजिमेंट की चौथी बटालियन में वे तैनात हुए, जो विभाजन के बाद पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। आजादी के बाद सैम को 8वीं गोरखा राइफल्स में नियुक्त किया गया। साल-1973 में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई। 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में जन्में मानेकशॉ की 27 जून 2008 को वेलिंगटन में 94 साल की उम्र में मृत्यु हुई। ‘सैम बहादुर’ नाम उन्हें उनकी गोरखा रेजिमेंट में ही मिला। इसी नाम से मेघना गुलजार निर्देशित और विक्की कौशल अभिनीत फिल्म 1 दिसंबर से थियेटरों में प्रदर्शित हुई है।