सरयू में विसर्जित की स्थायी निवास प्रमाण-पत्र की प्रतियां, मौजूदा भू-कानून की जलाई चिता
बागेश्वर। मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के आह्वान पर बड़ी संख्या में युवाओं ने बागेश्वर की सरयू नदी में स्थायी निवास प्रमाण-पत्र की प्रतियां विसर्जित की। इसके साथ ही जमीनों की लूट के रास्ते खोलने के लिए लागू किए गए मौजूदा भू-कानून की चिता भी जलाई।
इस मौके पर सरयू नदी के तट पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी और सह संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि बागेश्वर आंदोलन की भूमि रही है। चाहे देश आजादी का आंदोलन रहा हो या उत्तराखंड राज्य आंदोलन, इस भूमि ने आंदोलन को धार दी है। बाबा बागनाथ की जमीन से एक बार फिर बड़े आंदोलन की शुरुआत हो रही है।
उन्होंने कहा कि बाबा बागनाथ के आशीर्वाद से मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति आंदोलन को आगे बढ़ाएगी। सरयू नदी के तट पर स्थायी निवास प्रमाण पत्र की प्रतियां बहाते हुए युवाओं ने कहा कि अब लड़ाई आरपार की होगी। सरकार ने जल्द मूल निवास-1950 लागू नहीं किया, तो उत्तराखंड आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन होगा।
पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत, बेरोजगार संघ कुमांऊ के संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, कार्तिक उपाध्याय ने कहा कि हमें हिमाचल की तरह सशक्त भू-कानून चाहिए। सीमित मात्रा में बची कृषि भूमि की खरीद फरोख्त पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए। समिति के सदस्य अनिल डोभाल, दीपक ढौंडियाल, प्रांजल नौडियाल, मनीष सुंदरियाल, सौरभ भट्ट, मयंक चौबे, जितेंद्र रावत, योगेश कुमार, बसंत बल्लभ पांडे, देवेंद्र बिष्ट, विनीत सकलानी, प्रकाश बहुगुणा, हरेंद्र सिंह कंडारी, सुमित कुमार ने इस अवसर पर अंकिता भंडारी के हत्यारों को फांसी देने और कथित वीआईपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग उठाई।
वक्ताओं ने कहा कि आज बाहर से आने वाले लोगों ने अपने फर्जी स्थायी निवास प्रमाण-पत्र बनाकर हमारे संसाधनों पर डाका डाल दिया है। नौकरियों और जमीन से लेकर हर तरह के संसाधनों को लूटा जा रहा है। मूल निवासी अपने ही राज्य में धक्के खाने के लिए मजबूर हैं।
इस मौके पर जितेंद्र रावत, नारायण सिंह बिष्ट, जसवंत सिंह बिष्ट, महेश चंद्र पांडे, आनन्द सिंह, दयाल सिंह पुंडीर, गोविंद सिंह, केदार सिंह कोरंगा, अवतार सिंह, भूपेंद्र सिंह, शेखर भट्ट, ललित सिंह मेहता, सूरज दुबे, भुवन कठैत ने कहा कि आज हमारी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। जब हमारा राज्य बचेगा, तभी हमारी खिचड़ी संकरांद, घुघुतिया त्यार, मरोज त्योहार बचेगा। आज डेमोग्राफी बदलने से सबसे बड़ा खतरा उत्तराखंड की संस्कृति को होने जा रहा है।