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उत्तराखंड के लिए बड़ी खबर: कोर्ट ने रामपुर तिराहा कांड में दो पीएसी जवानों को दुष्कर्म का दोषी पाया, सजा का ऐलान 18 को

मुजफ्फरनगर/देहरादून। उत्तराखंड के लिए बड़ी खबर है। रामपुर तिराहा कांड में कोर्ट ने 30 साल बाद तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पीएसी के दो जवानों को सामूहिक दुष्कर्म, छेड़छाड़ और षड्यंत्र आदि का दोषी करार दिया है। दोष सिद्ध होने के बाद अब दोनो मुजरिमों को सजा सुनाने के लिए कोर्ट ने 18 मार्च की तारीख तय की है।

अपर जिला एवं सत्र न्यायायलय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सीबीआई बनाम मिलाप सिंह मामले में बीते 5 मार्च को सुनवाई पूरी करने के बाद शुक्रवार को फैसले का दिन तय किया था। अभियोजन पक्ष की ओर से शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) परवेंद्र सिंह के साथ ही उत्तराखंड आंदोलनकारियों की ओर से अनुराग वर्मा ने तर्क रखे। अभियोजन पक्ष सीबीआई की ओर से मामले में कुल 15 गवाह पेश किए गए थे।

शुक्रवार को मामले में सुनवाई का दिन होने के कारण सुबह से ही कोर्ट परिसर में भीड़भाड़ रही। काफी संख्या में मीडिया और आंदोलनकारियों का भी जमावड़ा रहा। इसके मद्देनजर कड़े सुरक्षा बंदोबस्त परिसर में किए गए थे। दोनों अभियुक्तों पीएसी के जवान (अब सेवानिवृत्त) मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप को कस्टडी में कोर्ट में लाया गया। कोर्ट ने मामले में दोनों को दोषी करार दिया। दोषियों की सजा के प्रश्न पर सुनवाई और फैसले के लिए कोर्ट ने 18 मार्च का दिन तय किया है। तब पीएसी गाजियाबाद में तैनात सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप से जनपद एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होर्ची गांव और वीरेंद्र प्रताप सिद्धार्थ नगर के गौरी गांव का निवासी है।

आज भी ताजे हैं 2 अक्तूबर 1994 की उस काली रात और खूनी भोर के जख्म

अविभाजित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन आठ पर्वतीय जिलों के अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर अगस्त-1994 को उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक और पर्वतीय गांधी स्व. इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व में पूरे क्षेत्र और देश के कई हिस्सों में प्रचंड जनांदोलन हुआ। तत्कालीन मुलायम सिंह-मायावती नीत सपा-बसपा गठबंधन की सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए जमकर दमनचक्र चलाया। खटीमा और मसूरी के बाद 2 अक्तूबर को गांधी जयंती की तड़के मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस और पीएसी ने उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर फायरिंग की। इसमें कई युवाओं की मौके पर ही मौत हो गई और कुछ को पुलिस ने लापता कर दिया। 1 अक्तूबर 1994 की रात दिल्ली रैली के लिए उत्तराखंड और अन्य हिस्सों से कूच कर रहे हजारों आंदोलनकारियों की बसों को पुलिस-पीएसी ने रामपुर तिराहा में रोक लिया। इस दौरान कई आंदोलनकारी महिलाओं से दुर्व्यवहार और कुछ के साथ पुलिस-पीएसी ने दुष्कर्म दुष्कर्म भी किया। इस घटना के विरोध में उत्तराखंड समेत कई स्थानों पर अगले दिन व्यापक हिंसा हुई और कई दिन तक कफ्र्यू लगा रहा। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति और कई सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों की मांग व याचिका पर कोर्ट के निर्देश के बाद इस वीभत्स कांड की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने कई मामले दर्ज किए, जो विभिन्न कोर्ट में चल रहे हैं। इन्हीं से से 25 जनवरी 1995 को उक्त पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी मुकदमे दर्ज किए गए थे।

आंदोलनकारियों ने कोर्ट के फैसले को बताया उम्मीद की किरण

करीब 30 साल बाद रामपुर तिराहा कांड में दो पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिए जाने के कोर्ट के फैसले का उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने स्वागत करते हुए न्यायालय के प्रति आभार जताया है। मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन नेगी, प्रदेश महामंत्री रामलाल खंडूरी व प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती ने कहा कि हम पिछले 30 वर्षों से प्रत्येक 2 अक्तूबर को काला दिवस के रूप में मनाते हैं और न्याय की मांग करते आ रहे हैं। अब कोर्ट के आदेश से उन सभी राज्य आंदोलनकारी व शहीदों परिवारों को अवश्य राहत मिली होगी। मंच की नेत्री शकुंतला नेगी व सुलोचना भट्ट ने न्यायालय के फैसले पर आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह देर से आया, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के लिए राहत लेकर आया है। आखिर 30 वर्षों का इंतजार कम नहीं होता। अन्य मामलों में भी इससे न्याय की उम्मीद की किरण जगी है।

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