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माले नेताओं ने 20 दिन बाद भी गंगोत्री हाईवे सुचारू न कर पाने पर सरकार को घेरा, संपूर्ण उत्तराखंड के विस्तृत सर्वे के लिए हाईपावर कमेटी के गठन की उठाई मांग

देहरादून। धराली आपदा के करीब 20 दिन बाद भी गंगोत्री नेषनल हाईवे सुचारू न कर पाने और हताहतों की संख्या व नुकसान का ब्योरा न दिए जाने को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। पार्टी ने सरकार पर आपदा प्रभावितों के बीच फूट डालने की कोषिषों का भी आरोप लगाया है। उन्होंने संपूर्ण उत्तराखंड में आपदा संभावित स्थलों का व्यापक सर्वेक्षण कराने की मांग करते हुए सरकार से इसके लिए वरिष्ठ व निष्पक्ष वैज्ञानिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए हाईपावर कमेटी के गठन की मांग की।
रविवार को यहां स्थित उत्तराखंड शहीद समारक भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेष मैखुरी व गढ़वाल सचिव अतुल सती ने कहा कि 5 अगस्त को उत्तरकाषी के धराली में आपदा आई थी। लेकिन, आज 20 दिन बाद भी सरकार वहां के लिए सड़क को सुचारू नहीं कर पाई है। वह सेना और सीमा की बातें करके चुनावी लाभ बटोरती है, लेकिन हाल यह है कि उसके राज में 20 दिन से सीमावर्ती क्षेत्र को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग बाधित है। नेताद्वय ने कहा कि सरकार अभी तक हताहतों की वास्तविक संख्या और नुकसान का ब्योरा नहीं दे पाई है। यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि लापता अथवा मलबे में दबे लोगों की खोज उसकी प्राथमिकता में नहीं है।
मैखुरी व सती ने कहा कि मुआवजे और पुनर्वास पर राज्य सरकार की नीति अभी भी स्पष्ट नहीं है। आईएएस अफसरों की कमेटी ने क्या किया, इसे लेकर भी अब तक कोई स्पष्टता नहीं है। स्थानीय लोगों में अपने भविष्य को लेकर आशंका और असंतोष है। उन्होंने मांग की कि मुआवजे और पुनर्वास में धराली के आपदा प्रभावितों का तो ख्याल रखा ही जाना चाहिए, साथ ही उत्तरकाशी से लेकर संपूर्ण गंगोत्री मार्ग में यात्रा पर निर्भर सभी लोगों को इसके दायरे में रखना चाहिए। यही नहीं, धराली आपदा में हताहत बिहार और नेपाल के मजदूरों के आश्रितों का भी मुआवजा व पुनर्वास में समुचित ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि धराली में 40-50 होटलों में से केवल पंजीकृत 9 होटलों को ही मुआवजा दिए जाने जैसी बात सामने आ रही है, जो निंदनीय है। यह आपदा प्रभावितों में फूट डालने की कोशिश है। ऐसा नहीं होना चाहिए, उन सभी को समुचित मुआवजा दिया जाना चाहिए, जिनका भी नुकसान हुआ है।
माले नेताओं ने कहा कि स्थानीय लोग लंबे समय से वैकल्पिक मार्ग का सुझाव देते रहे हैं, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। यदि वैकल्पिक मार्ग का निर्माण किया गया होता, तो आपदा के समय वह उपयोगी साबित होता। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन में लगे विभागों में आपसी तालमेल की कमी स्पष्ट दिखती है। यह पूर्व में रैणी आपदा के समय भी देखा गया। मैखुरी व सती ने कहा कि जोशीमठ की तर्ज पर पुनर्वास जैसे जुमले उछालने के बजाय धराली के लिए अलग से नीति बनाई जाए। वास्तविकता यह है कि जोशीमठ के प्रभावितों का दो साल बाद भी अब तक न पुनर्वास हुआ और न ही स्थिरीकरण के कार्य शुरू किए गए है। धराली के प्रभावितों के प्रतिनिधियों को पुनर्वास व मुआवजा नीति निर्धारित करने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए। उन्होंने चेताया कि ऑल वेदर रोड के नाम पर हजारों पेड़ों को काटने की योजना भविष्य में और विनाशकारी होगी। सुक्खी टॉप बायपास योजना भविष्य में बड़े भूस्खलन को सक्रिय करेगी।

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