आखिरकार सामने आई धराली जल प्रलय की असल वजह, एसडीआरएफ के पर्वतारोहियों ने ‘ड्रोन’ से खोला खीरगंगा का ‘राज’
देहरादून। खीरगंगा में आई ‘सुनामी’ की वजह अब लगभग साफ हो गई है। धराली को तबाह करने वाली यह पहाड़ी गाड (नदी) किसी झील टूटने से विकराल नहीं हुई। इसके विकराल होने की वजह इसके कैचमेंट एरिया में बादल फटना (अत्यधिक वर्षा) ही थी। जाने-माने भूगर्भ विज्ञानी डॉ. पीसी नवानी पहले ही यह मत जाहिर कर चुके थे। अब अन्य विशेषज्ञ भी किसी झील या ग्लेशियर लेक टूटने की बात को खारिज कर रहे हैं। डॉ. नवानी ने इसकी वजह सीमित अवधि में अत्यधिक वर्षा से कैचमेंट एरिया में जमा मोरेन (ग्लेशियर पीछे हटने से जमा मलबा) तेजी के साथ नीचे आना बताई। अब एसडीआरएफ की ओर से खीरगंगा के उद्गम श्रीकंठ पर्वत के आसपास और नदी के समूचे कैचमेंट एरिया की जारी तस्वीरें और वीडियो से भी इसकी पुष्टि हो रही है।
जाने-माने भू-विज्ञानी डॉ. पीसी नवानी ने शुरू में ही खारिज कर दी थी ग्लेशियर लेक टूटने जैसी थ्योरी

बीते 5 अगस्त की दोपहर उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में गंगोत्री यात्रा के प्रमुख कस्बे धराली को खीरगंगा में आए सुनामी सरीखे प्रचंड उफान ने तबाह कर दिया। धराली बाजार तो पलक झपकते ही नक्शे से मिट गया। धराली का काफी बड़ा हिस्सा करीब 40-50 फीट ऊंचे मलबे में दब गया। महज कुछ पलों में सबकुछ तबाह कर देने वाली इस सुनामी की वजह शुरूआत में खीरगंगा के कैचमेंट एरिया में किसी झील के टूटने को माना गया। कुछ विशेषज्ञों ने ग्लेशियर लेक का टूटना इस प्रलय के पीछे की वजह मानी। लेकिन, विशेषज्ञों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो शुरू से यह मान रहा था कि ग्लेशियर लेक टूटने जैसी किसी वजह से नहीं, बल्कि अत्यधिक वर्षा के कारण ऐसा हुआ। ग्लेशियर लेक टूटने जैसी थ्योरी को खारिज करने वालों में प्रमुख थे जाने-माने भूर्गभ विज्ञानी व जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (देहरादून) के पूर्व निदेशक डॉ. पीसी नवानी।
अत्यधिक वर्षा से कैचमेंट से टनों मलबा लेकर 150 किमी. तेजी से दौड़ा खीरगंगा में 100 क्यूमैक्स पानी

डॉ. नवानी का शुरू से मानना रहा कि खीरगंगा के कैचमेंट में अत्यधिक वर्षा (मसलन 1 घंटे में 100 मिलीमीटर से ज्यादा) ने यह हालात पैदा किए होंगे। इस तरह की बारिश के लिए ही आम बोलचाल में बादल फटना कहा जाता है। डॉ. नवानी का आकलन था कि ग्लेशियर काफी पीछे खिसक जाने के कारण खीरगंगा के कैचमेंट में बहुत बड़ी मात्रा में ग्लेशियर मोरेन (मलबा) जमा था, जो अत्यधिक वर्षा में लूज होकर पानी के साथ तेजी से नीचे आया। उस समय इसमें कम से कम 100 क्यूमेक्स (1 लाख लीटर प्रति सेकेंड) पानी 150 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ा होगा, जिसने धराली को तबाह किया। अब इसी तरह के संकेत एसडीआरएफ की ओर से जारी ताजा तस्वीरों और वीडियो से मिल रहे हैं।
एसडीआरएफ ने तीन बार भेजी टीमें, ड्रोन उड़ाकर देखा कहीं नहीं मिले झील के निशां

स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एसडीआरएफ) ने तीन बार खीरगंगा क्षेत्र का व्यापक सर्वे किया। सबसे पहले ड्रोन की मदद से खीरगंगा के काफी आगे तक का जायजा लिया गया। इसके बाद 7 अगस्त को एसडीआरएफ मुख्य आरक्षी व कई चोटियों पर चढ़ाई कर चुके पर्वतारोही राजेंद्र नाथ के नेतृत्व में एक दल भेजा गया, जिसमें कांस्टेबल जसवेंद्र सिंह, सोहन सिंह व गोपाल सिंह की टीम बनाकर खीरगंगा के कैचमेंट एरिया में भेजी गई। यह टीम धराली गांव से पैदल-पैदल खीर गंगा की दाहिनी ओर से होते हुए लगभग 3450 मीटर की ऊंचाई तक पहुंची। वहां से ड्रोन को और ऊपर व चारो ओर उड़ाकर तस्वीरें व वीडियो बनाए गए। खीर गंगा की पूरी रेकी करने के बाद टीम ने कहीं भी किसी तरह की झील के निर्माण को नहीं पाया।
पहले 3900 मीटर, फिर 4812 मीटर ऊंचाई पर पहुंचकर खंगाला ग्लेशियर बेस और खीरगंगा का कैचमेंट

इसके बाद 8 अगस्त को एएसआई पंकज घिल्डियाल, मुख्य आरक्षी राजेंद्र नाथ व प्रदीप पंवार, कांस्टेबल सोहन सिंह व एफएम प्रवीण चौहान ने श्रीकंठ पर्वत के नीचे लगभग 3900 मीटर ऊंचाई पर पुनः रेकी की। इस टीम ने भी ड्रोन से खीरगंगा के पूरे कैचमेंट एरिया व धराली क्षेत्र के ऊपर बने गदेरों की वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी की। इन फोटो और वीडियो को विस्तृत अध्ययन के लिए वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान और यू-कॉस्ट को भेजा गया है। इसके बाद 14-15 अगस्त को पुनः मुख्य आरक्षी राजेंद्र नाथ के नेतृत्व में मुख्य आरक्षी प्रदीप पंवार, कांस्टेबल सोहन सिंह, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी के प्रशिक्षक शिवराज पंवार व अनूप पंवार और पोर्टर तारा व हरि की संयुक्त टीम श्रीकंठ पर्वत के बेस और खीरगंगा के उद्गम स्थल के भौतिक निरीक्षण पर भेजी गई। टीम ने लगभग 4812 मीटर ऊंचाई तक पहुंचकर घने कोहरे, तेज हवाओं और बारिश जैसी अत्यधिक विषम परिस्थितियों के बीच भी ड्रोन के माध्यम से ग्लेशियर बेस और उद्गम स्थल की विस्तृत वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी की।
डॉ. नवानी बोले, अब सामने आई ताजा तस्वीरों और वीडियो ने भी कर दी है मेरी बात की पुष्टि
एसडीआरएफ की ओर से जारी वीडियो व फोटोग्राफ्स पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भूगर्भ विज्ञानी डॉ. पीसी नवानी कहते हैं, ‘पहले मेरा आकलन था कि खीरगंगा में उफान किसी लेक टूटने से नहीं, अत्यधिक वर्षा से आया। अब यह पूरी तरह यकीन में बदल गया है, क्योंकि जो फोटो और वीडियो कैचमेंट एरिया से आए हैं, वे भी पूरी तरह मेरे आकलन की पुष्टि कर रहे हैं।’ डॉ. नवानी कहते हैं कि तस्वीरों और वीडियो में साफ दिख रहा है कि कैचमेंट में कितना मोरेन है। ग्लेशियर लेक के दूर-दूर तक कहीं कोई निशान नहीं हैं। वह कहते है कि राज्य सरकार की ओर से भेजे गए भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के विशेषज्ञ दल ने भी ग्लेशियर लेक टूटने जैसी मान्यता को खारिज करते हुए अत्यधिक वर्षा को ही आरंभिक तौर पर वजह माना है।

