मूल निवास-1950 और भू-कानून के मुद्दे पर हल्द्वानी में हजारों लोग उतरे सड़कों पर, प्रदेश भर से पहुंचे संगठनों के कार्यकर्ता
हल्द्वानी। मूल निवास-1950 और सशक्त भू-कानून लागू करने मांग को लेकर रविवार को यहां महारैली आयोजित की गई। इसमें हल्द्वानी समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों उत्तराखंडियों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की।
‘मूल निवास-भूकानून समन्वय संघर्ष समिति’ ने महारैली का आह्वान किया था, जिसमें विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े लोगों ने भी शिरकत की। पूर्वाह्न हल्द्वानी के बुद्ध पार्क से पर्वतीय उत्थान मंच गोल्ज्यू देवता तक निकाली गई महारैली में मूल निवास-1950 और राज्य में सशक्त भू-कानून लागू करने की मांग को लेकर नारे बुलंद किए गए। इससे पहले बुद्ध पार्क में सभा का आयोजन किया गया, जिसमें तमाम नेताओं ने विचार व्यक्त किए।
अपने ही प्रदेश में दोयम दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं उत्तराखंड के मूल निवासी: मोहित

संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है। अब हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं। डिमरी ने कहा कि मूल निवास की कट ऑफ डेट-1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून भी बेहद जरूरी है। मूल निवास का मुद्दा उत्तराखंड की पहचान के साथ ही यहां के लोगों के भविष्य से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मूल निवास की लड़ाई जीते बिना उत्तराखंड का भविष्य असुरक्षित है।
प्रदेश के युवाओं के समक्ष खड़ा हो गया है रोजगार का संकट: लूशुन

संघर्ष समिति के सह-संयोजक लूशुन टोडरिया ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें इसके लिए मूल निवास-1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। पहाड़ी आर्मी के संयोजक हरीश रावत ने कहा कि जिस तरह प्रदेश के मूल निवासियों के हक-हकूकों को खत्म किया जा रहा है, उससे एक दिन प्रदेश के मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो जाएगा। उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार, कांग्रेस नेता सौरभ भट्ट, राज्य आंदोलनकारी चारु तिवारी, बेरोजगार संघ के कुमाऊं संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, आरंभ ग्रुप के राहुल पंत, विशाल भोजक, पीयूष जोशी, दीपक जोशी, यूकेडी नेता पुष्पेश त्रिपाठी, भुवन जोशी, सुशील उनियाल, उत्तम बिष्ट, मोहन चंद्र कांडपाल, प्रमोद काला, अनिल डोभाल, वन यूके के अजय बिष्ट आदि ने भी संबोधित किया। संचालन मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के कोर मेंबर शैलेन्द्र सिंह दानू और प्रांजल नौडियाल ने संयुक्त रूप से किया।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के नेताओं की भी रही बढ़चढ़ कर भागीदारी

महारैली में अन्य संगठनों के साथ ही उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने भी बढ़चढ़ कर भागीदारी की। देहरादून के साथ ही ऋषिकेश, नरेंद्रनगर, कोटद्वार, हल्द्वानी, भीमताल, खटीमा और नैनीताल से भी मंच से जुड़े आंदोलनकारी काफी संख्या में हल्द्वानी पहुंचे। मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, प्रदेश महामंत्री रामलाल खंडूरी, प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती और कुमाऊं प्रभारी नरेश भट्ट ने कहा कि मंच राज्य बनने के बाद से ही राज्य आंदोलनकारियों के मुद्दों के साथ ही सशक्त भू-कानून और मूल निवास-1950 के मुद्दे पर संघर्षरत है। उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार ने इन मुद्दों पर अगर अब भी लेटलतीफी की तो संघर्ष समिति के साथ मिलकर मंच प्रदेश भर में आंदोलन तेज करेगा।

रैली में मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष सतेंद्र भंडारी, प्रदेश महामंत्री डीएस गुसाईं, मनोज नौटियाल, नैनीताल जिलाध्यक्ष दीपक रौतेला, भीमताल से हेम पाठक, नरेंद्रनगर प्रभारी सुशील चमोली, आशीष बिष्ट, सांस्कृतिक मोर्चा की अध्यक्ष सुलोचना भट्ट, संयोजक सरिता जुयाल, सुबोधिनी भट्ट, दीपक रावत, प्रचार मंत्री सुदेश कुमार, ऋषिकेश इकाई अध्यक्ष रुकम पोखरियाल आदि शामिल रहे।
संघर्ष समिति इन मांगों को लेकर है मुखर–
1- मूल निवास प्रमाण-पत्र की व्यवस्था को कट ऑफ डेट-1950 से लागू किया जाए।
2- प्रदेश में हिमाचल की तर्ज पर ठोस भू-कानून लागू हो।
3- शहरी क्षेत्र में सिर्फ 250 मीटर तक भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। जमीन वही खरीद पाए, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।
4- ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
5- गैर कृषक के कृषि भूमि खरीदने पर पूरी तरह रोक लगे।
6- पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगाई जाए।
7- राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्योरा सार्वजनिक किया जाए।
8- प्रदेश में, विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में जहां भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
9- ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।

