‘मूल निवास’ मामले में मुख्यमंत्री ने की कमेटी के गठन की घोषणा, कहा-सिफारिशों के आधार पर करेंगे काम
देहरादून। ‘मूल निवास-1950’ और भू-कानून को लेकर गरमाए माहौल के बीच सरकार की ओर से बड़ी खबर आ रही है। स्थायी निवास की व्यवस्था को खत्म करके राज्य में सिर्फ मूल निवास की व्यवस्था बहाल करने संबंधी मांग के संदर्भ में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वीरवार को आश्वस्त किया कि जल्द ही एक कमेटी का गठन किया जाएगा, जो इस मामले में रिपोर्ट देगी। उसकी सिफारिशों के आधार पर सरकार काम करेगी। इस बीच, ‘मूल निवास-भू कानून स्वाभिमान समन्वय संघर्ष समिति’ ने दो टूक शब्दों में कहा है कि मूल निवास-1950 की लड़ाई को आखिरी दम तक लड़ा जाएगा।
मूल निवास के बजाय स्थायी निवास प्रमाण-पत्र की व्यवस्था को लेकर भड़क रहा असंतोष

उत्तराखंड में पूर्ववर्ती सरकारों के समय से मूल निवास प्रमाण पत्र की व्यवस्था को दरकिनार करते हुए स्थायी निवास प्रमाण पत्र की मौजूदा व्यवस्था के चलते राज्य के मूल निवासी लगातार हाशिए पर जा रहे हैं। उनके हक-हकूकों पर बाहर से आए लोग काबिज हो रहे हैं। वहीं, उत्तराखंड में भू-कानून को एकदम लचर बना दिए जाने के बाद से जमीनें तेजी से बिक रही हैं। इस पूरी स्थिति ने मैदान से लेकर दूर-दराज पहाड़ तक उत्तराखंड के जन-सांख्यिकीय स्वरूप को भी बुरी तरह बदल कर रख दिया है।उस उत्तराखंड के, जिसके लिए बड़ी संख्या में युवाओं-महिलाओं ने शहादतें दीं, संघर्ष किया। गौरतलब है कि अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय उत्तराखंड क्षेत्र के मूल निवासियों के मूल निवास प्रमाण पत्र ही बनते थे। लेकिन, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां की सरकारों ने उत्तराखंडवासियों का यह हक भी छीन लिया। इन स्थितियों में लगातार सुलगता असंतोष अब युवाओं के नेतृत्व में धरातल पर आ रहा है। युवाओं की बड़ी तादाद पिछले लंबे समय से 1950 को आधार वर्ष मानते हुए मूल निवास प्रमाण पत्र की व्यवस्था को बहाल करने और हिमाचल की तर्ज पर सशक्त भू-कानून लागू करने की मांग को लेकर आंदोलित हैं। इसी क्रम में मूल निवास स्वाभिमान समन्वय संघर्ष समिति ने दोनों मांगों को लेकर 24 दिसंबर को राजधानी देहरादून में विशाल रैली आहूत की है।
सशक्त भू-कानून पर सुभाष कुमार कमेटी की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में, जन असंतोष से सरकार की बढ़ी चिंता

लोकसभा चुनावों से ऐन पहले उत्तराखंड और उत्तराखंड मूल के लोगों के हक-हकूकों से जुड़े मुद्दे पर आहूत इस रैली को आयोजन से पहले ही मिल रहे व्यापक समर्थन से सरकार की पेशानी पर भी बल पड़ रहे हैं। लिहाजा, वह भी इस दिशा में थोड़ा सक्रिय हुई है। भू-कानून के मामले में तो सरकार पिछले एक वर्ष से सुभाष कुमार कमेटी की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाले हुए है, लेकिन जन-असंतोष को शांत करने के लिए उसने बुधवार को आनन-फानन में मूल निवास प्रमाण पत्र के मामले में शासनादेश जारी कर दिया। इस शासनादेश के जरिए राज्य में स्थायी निवास के अतिरिक्त मूल निवास प्रमाण-पत्र को भी सभी स्तरों पर मान्य कर दिया गया है। उनके लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है। इससे एक कदम और आगे बढ़ते हुए वीरवार को मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर कमेटी बनाने की घोषणा कर दी।
मूल निवास प्रमाण पत्र से ही कवर होंगी सभी अन्य औपचारिकताएंः धामी

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से उनके सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम के बाद मीडिया ने स्थायी निवास प्रमाण पत्र की व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर सिर्फ मूल निवास की ही बाध्यता करने संबंधी राज्यवासियों की मांग के बारे में सवाल किया। इसके जवाब में मुख्यमंत्री धामी ने कहा, ‘हम लोगों ने आज उस दिशा में पहले ही हमने कदम उठा दिया है और मूल निवास को ही हमने कहा है कि स्थायी निवास….और भी जो चीजें होंगी, उसके लिए अभी एक कमेटी भी हम बनाएंगे, वह कमेटी भी काम करेगी और जो उसकी सिफारिशें आएंगी, उसके आधार पर काम करेंगे।’ मुख्यमंत्री धामी ने कहा, ‘चूंकि, अनेक स्थानों पर आज भी जहां लोग जाते हैं, तो मूल निवासी को अनेक प्रकार से स्थायी निवास या अन्य सर्टिफिकेट बनाने पड़ते हैं। मूल निवास जिनके पास होगा, भविष्य में हमने यह व्यवस्था कर दी है और इसका सर्कुलर भी जारी कर रहे हैं कि जिनके पास मूल निवास हो, वो सारी जो अन्य औचारिकताएं हैं, स्थायी निवास की या जो भी अन्य होती हैं, वह स्वतः ही मान ली जाएंगी कि मूल निवास से वह कवर हो जाएंगी।’
मूल निवास-1950 से कम पर राजी नहीं, जारी रहेगा संघर्ष समिति का आंदोलनः डिमरी

इस बीच, ‘मूल निवास-भू कानून स्वाभिमान समन्वय संघर्ष समिति‘ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि मूल निवास स्वाभिमान रैली को लेकर प्रदेशभर से मिल रहे जबर्दस्त समर्थन के बीच उत्तराखंड सरकार ने एक शासनादेश रूपी ‘झुनझुना’ थमाया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य के मूल निवास प्रमाण-पत्र धारकों को किसी भी सरकारी विभाग की ओर से स्थायी निवास प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। इस झुनझुने आदेश के जरिए ये कहा जा रहा है कि राज्य के मूल निवासियों को अब स्थायी निवास प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं होगी। डिमरी ने कहा कि सरकार का यह आदेश पूरी तरह से जनता की आंखों में धूल झोंकने वाला है। उन्होंने कहा कि रैली को लेकर जिस तरह का उत्साह पूरे उत्तराखंड में दिख रहा है, उससे लोगों का ध्यान बंटाने के लिए सरकार ने यह दिखावा किया है। युवा नेता डिमरी ने सवाल किया है कि सरकार पहले यह तो बताए कि मूल निवास की सीमा वह किस तिथि को मानती है ? उन्होंने कहा कि हमारी स्पष्ट मांग है कि उत्तराखंड में मूल निवास की कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 मानी जानी चाहिए। जब तक वर्ष-1950 की तिथि अंतिम नहीं मानी जाएगी, तब तक मूल निवास की लड़ाई जारी रहेगी।
सरकार मूल निवास की कट ऑफ डेट और क्लास-3 व 4 के पदों के लिए वरीयता पर स्थिति स्पष्ट करेः टोडरिया

संघर्ष समिति से जुड़े युवा नेता लुशुन टोडरिया ने एक वीडियो संदेश जारी कर कहा कि सरकारी शासनादेश में किसी तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है कि उक्त तिथि से उत्तराखंड में रह रहा व्यक्ति यहां का मूल निवासी होगा। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि उत्तराखंड के मूल निवासियों को क्लास 3 व 4 की भर्तियों और स्वरोजगार योजनाओं में वरियता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि आगे भी मूल निवास नहीं, बल्कि स्थायी निवास प्रमाण पत्र ही बनेंगे। इसलिए, 24 दिसंबर की रैली यथावत रहेगी। उन्होंने लोगों से इसमें बढ़चढ़ कर शिरकत करने का आह्वान किया है।
यूपी के समय के मूल निवास प्रमाण पत्र भी मान्य हों और लागू हो सशक्त भू-कानूनः खंडूरी
वहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रदेश महामंत्री रामलाल खंडूरी ने कहा कि आंदोलकारी मंच मूल निवास की व्यवस्था लागू करने के साथ ही यह मांग भी लगातार कर रहा था कि राज्य बनने से पूर्व अविभाजित यूपी के समय जिनके मूल निवास प्रमाण पत्र बने हैं, वे भी मान्य हों। उन्होंने सवाल उठाया कि अविभाजित यूपी के समय उत्तराखंडवासियों के मूल निवास बनते थे। फिर उनसे अब स्थायी निवास प्रमाण पत्र क्यों मांगे जा रहे हैं? उनका कहना है कि प्रमाण-पत्रों के मामले में इससे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति क्या होगी कि कई मामलों में माता-पिता तो उत्तराखंड के मूल निवासी हैं, जबकि उनके बच्चे सिर्फ स्थायी निवासी। खंडूरी ने 24 दिसंबर को प्रस्तावित रैली को समर्थन देते हुए कहा कि अभी मूल निवास प्रमाण पत्र निर्गत करने और सभी स्तरों पर इन्हें अनिवार्य रूप से लागू कराने के साथ ही सशक्त भू-कानून के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए, सभी राज्य समर्थक ताकतों की एकजुटता जरूरी है।

