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सिलक्यारा टनल हादसाः पीएमओ ने पूरी तरह अपने हाथ में लिया रेस्क्यू ऑपरेशन, विशेषज्ञों समेत अफसरों का दल मौके पर भेजा

उत्तरकाशी। सिलक्यारा टनल में 8 राज्यों के 41 मजदूरों की सांसे शनिवार को सातवें दिन भी अनिश्चितता के अंधकार में फंसी हैं। शुरूआती निर्माण एजेंसी के बाद सरकारी लापरवाही और ‘प्रयोगों’ ने इन बेशकीमती जिंदगियों से सातवें दिन भी उजाला छीने रखा। टनल में ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग का काम शुक्रवार को रूक गया, तो शनिवार को दोपहर तक भी शुरू नहीं हो पाया था। इस बीच, अब जिंदगी बचाने के इस अभियान को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने सीधे अपने हाथ में ले लिया। पीएमओ के निर्देश पर भूर्गभ विज्ञानियों समेत उच्चाधिकारियों का एक दल शनिवार दोपहर हेलीकॉप्टर से सिलक्यारा पहुंचा और रेस्क्यू एजेंसियों से मंत्रणा कर आगे का एक्शन प्लान तय करने में जुट गया। वहीं, प्लान ए और बी फेल होने के बाद अब प्लान सी पर अमल की तैयारी है। इसके तहत वर्टिकल ड्रिल की संभावना तलाशी जा रही है। इसके लिए ओएनजीसी से भी मदद मांगी जा रही है।

अब तक की धीमी प्रगति से पीएमओ चिंतित, टीम में हैं ये अधिकारी और जियो-इंजीनियर्स
ऑपरेशन के संचालन और निगरानी के लिए पीएमओ से भेजी गई टीम में पीएमओ के डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल, ओएसडी (टूरिज्म) भास्कर खुल्बे, मिनिस्ट्री ऑफ रोड, ट्रांसपोर्ट एंड हाईवेज के एडिशनल सेक्रेेटरी महमूद अहमद, जियोलॉजिस्ट इंजिनियर वरूण अधिकारी व एक्सपर्ट इंजीनियर अरमांडो कैपलेन शामिल हैं। हेलीकॉप्टर से ये टीम पूर्वाह्न 11 बजे सिलक्यारा पहुंची और ऑपरेशन की कमान संभाली। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस पूरे मामले में अब तक की प्रगति से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। मजदूरों को निकलने में हो रही देरी से चिंतित पीएमओ ने अब सीधे अपने अधिकारियों की टीम मौके पर भेजकर सभी जरूरी व बेहतर से बेहतर विकल्पों पर काम करते हुए टनल में फंसे मजदूरों को रेस्क्यू करने को कहा है। इस टीम ने मौके पर मौजूद अधिकारियों और सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ समेत रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी टीमों के अफसरों के साथ ही इंजीनियर्स से भी मंत्रणा की।

शुक्रवार से रूकी है ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग, वायुसेना ने इंदौर से भी अर्थ आगर मशीन पहंुचाई
इस बीच, बताया गया है कि टनल में शुक्रवार दोपहर तक 22 मीटर ( अन्य सूचनाओं में 30 मीटर) ड्रिल और पाइप पुशिंग के बाद कुछ बाधा आ गई, जिस कारण आगे काम रूक गया। अभी आधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि खराबी नई दिल्ली से वायुसेना के मालवाहक विमानो के जरिए लाई गई अमेरिकन अर्थ आगर मशीन में आई अथवा टनल के मलबे में फंसे बोल्डर या मशीनों के कारण आई है। इस बीच, शुक्रवार को ही इंदौर से एक और हैवी अर्थ आगर मशीन को मंगवाया गया। इसे बैकअप के लिए मंगवाया बताया गया था, लेकिन अब यह बात सामने आ रही है कि अमेरिकन अर्थ आगर मशीन के बजाय इससे ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग का काम किया जाना है। इंदौर से ये मशीन शुक्रवार रात 1ः30 बजे वायुसेना के मालवाहक विमान के जरिए जौलीग्रांट एयरपोर्ट लाई गई और वहां से इसे तीन ट्रॉलर की मदद से सिलक्यारा रवाना किया गया। शनिवार पूर्वाह्न 11 बजे यह मशीन स्पॉट पर पहुंच गई थी। इसने काम शुरू किया अथवा नहीं, अधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं किया गया है।

कार्यदायी संस्था और ठेकेदार कंपनी की लापरवाही सवालों के घेरे में
12 नवंबर को दीपावली की सुबह हुए भूस्खलन और भूधसाव के बाद अंधी सुरंग में कैद हो गए मजदूरों के मामले में शुरू से ही विभिन्न स्तरों पर लापरवाही सामने आई है, जो परत-दर-परत अब खुल रही है। मजदूरों की जिंदगी से पहली लापरवाही तो कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल और ठेकेदार कंपनी के स्तर पर ही सामने आई है। उसके हवाले से सरकारी तौर पर जो सूचना जारी की जाती रही, उसमें उत्तराखंड के 2, हिमाचल का 1, बिहार के 4, पश्चिमी बंगाल के 3, उत्तर प्रदेश के 8, उड़ीसा के 5, असम के 2 और झारखंड के 15 (कुल 40) मजदूर टनल में फंसे बताए जाते रहे। ऑपरेशन के छठे दिन शुक्रवार को इस बात का खुलासा हुआ कि सुरंग में फंसे मजदूरों की संख्या 40 नहीं, बल्कि 41 है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कार्यदायी संस्था और निर्माण एजेंसी ने सरकार को भी गलत सूचना क्यों दी? यदि उन्हें 6 दिन तक यही पता नहीं था कि कितने मजदूर उन्होंने टनल में ड्यूटी पर भेजे थे, तो यह और भी ज्यादा गंभीर है। इसके अलावा लापरवाही का आलम यह भी है कि हमेशा जब टनल का काम होता है, तो इस तरह के हालात उतपन्न होने की स्थिति में आपात निकासी के लिए बीच-बीच में ‘एस्कैप टनल’, होल अथवा बड़े पाइपों की व्यवस्था पहले से की गई होती है, लेकिन सिलक्यारा टनल हादसे के मामले में यह व्यवस्था न होने से स्थिति गंभीर हो गई। यहां एनएच के उन अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ जाती है, जिन्होंने समय-समय पर निरीक्षण किया होगा और सुरक्षा मानकों की अनदेखी को नजरंदाज कर गए।

प्रदेश का सरकारी सिस्टम भी अनदेखी, ढिलाई और प्रयोगों को लेकर कठघरे में
प्रदेश के सरकारी सिस्टम के मामले में लापरवाही पहले ही सामने आ चुकी, जब रविवार सुबह हादसा होने के बावजूद सरकार, शासन अथवा मंडलस्तर से कोई ‘जिम्मेदार’ मौके पर नहीं पहुंचा। सब दीपावली मना लेने के बाद अगले दिन सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ या उनके बाद स्पॉट पर पहुंचे। पहले दिन सिर्फ जिलास्तरीय अधिकारी ही मौके पर रहे, जो अपनी सीमाओं के अनुरूप ही कर पाए। मुख्यमंत्री के लौटते ही शासन और मंडलस्तर के अधिकारी भी लौट गए। हालात यह है कि उसके बाद मुख्यमंत्री धामी मध्य प्रदेश और राजस्थान के दौरे पर चले गए और अधिकारी राजधानी के ‘एसी’ कमरों में। शासन अथवा मंडल के किसी भी अधिकारी ने मौके पर कैंप करने की जहमत नहीं उठाई। अलबत्ता, मुख्यमंत्री धामी के सरकारी आवास अथवा सचिवालय स्थित कार्यालय कक्ष में हो रही बैठकों में ही वे लगातार ‘युद्धस्तर पर गंभीर’ बने हुए हैं। रेस्क्यू ऑपरेशन को अफसरों ने शुरूआती दौर में किस कदर हल्के में लिया, इसकी बानगी देखिए। सोमवार को शासन के बड़े अधिकारी के निर्देश पर जल निगम के अधिकारी मौके पर होते हैं। उन्हें ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग का ‘विशेषज्ञ’ करार देते अभियान का तकनीकी संचालन उन्हें सौंपकर अपनी पीठ थपथपाई गई। इनकी विशेषज्ञता का आधार यह था कि इन्होंने कई जगह बोरिंग, ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग कराई है। यह हास्यास्पद इसलिए है कि जल निगम को ट्यूबवेल व हेंडपंप लगाने अथवा सीवर लाइन डलवाने के लिए जमीन के नीचे बोरिंग, ड्रिलिंग और पाइप पुशिंग का अनुभव है, न कि पहाड़ में टनल का। लिहाजा, इस लापरवाही के चलते उसी रात मशीन जवाब दे गई और हाथ खड़े कर दिए गए। किरकिरी के बाद सेना और वायुसेना की मदद ली गई। इस सबमें काफी समय व्यर्थ चला गया और फंसे श्रमिकों की सांसों का संघर्ष और बढ़ गया। अनदेखी का एक पहलू यह भी है कि शनिवार पूर्वाह्न तक भी न उत्तरकाशी जिले के प्रभारी मंत्री और न ही राज्य सरकार का कोई भी मंत्री एक बार भी सिलक्यारा आए। इसे लेकर विपक्ष भी उन्हें निशाने पर लिए हुए है।

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