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टनल हादसाः ‘क्विक रिस्पांस’ के बजाय दीपावली निपटाने में व्यस्त रहे शासन और सरकार, वृहद अभियान हुआ लेट

उत्तरकाशी। सिलक्यारा टनल हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि राज्य का सरकारी सिस्टम आपदा प्रबंधन के मामले में ‘क्विक रिस्पांस’ और ‘वृहद’ तैयारियों के लिहाज से अब भी लापरवाह बना है। टनल में 40 श्रमिक और कर्मचारी तीन दिन बीत जाने के बाद भी सुरक्षित निकाले जाने के बजाय जिंदगी की जंग लड़ने को मजबूर हैं। जिलास्तरीय अधिकारियों की तत्परता को छोड़ दें, तो हादसे के पहले दिन क्विक रिस्पांस के मामले में सरकार से लेकर शासन और मंडलस्तर के अधिकारियों तक ने  दीपावली मनाने, या कहें निपटा लेने को तरजीह दी। दिवाली निपटने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और अधिकारियों का दल-बल देहरादून से सिलक्यारा पहुंचा, तब जाकर वे इंतजामात किए जाने की कवायद शुरू हुई, जो एक दिन पहले हो गई होती, तो अब तक संभवतः फंसे श्रमिकों को निकालने में कुछ हद तक सफलता मिल गई होती।

ऋषिगंगा-रैणी आपदा के सबक से भी दूर नहीं कीं आपदा प्रबंधन की कमियां
याद करें, साल 2021 की 7 फरवरी। उस सुबह ऋषिगंगा-रैणी आपदा ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। लेकिन, अच्छी बात यह रही कि तब घटना के चंद घंटों के भीतर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समेत शासन और आपदा प्रबंधन के सभी अधिकारी ग्राउंड जीरो पर पहुंच चुके थे। ऑपरेशन बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया गया था। यह अलग बात है कि काफी संख्या में सुरंग में फंसे मजदूरों-कर्मियों तक कभी पहुंच नहीं बन पाई। यानी, तब क्विक रिस्पांस तो हुआ, लेकिन ऐसे हालात से निपटने की यांत्रिक और प्रशिक्षित मानवीय तैयारियां तब भी आज जैसी ही आधी-अधूरी थीं। यानी, तब से अब तक तकरीबन पौने तीन साल बाद भी ऐसे हादसों से निपटने की तैयारियां नाकाफी हैं। बहरहाल, यहां बात हो रही है सिलक्यारा टनल हादसे की, जहां न हाईलेवल पर क्विक रिस्पांस रहा और न तैयारियां समुचित।

जिलास्तरीय अधिकारी तत्काल जितना कर सकते थे किया
यमुनोत्री नेशनल हाईवे की दूरी कम करने के लिए बड़कोट और धरासू के बीच सिलक्यारा क्षेत्र में करीब 4.5 किलोमीटर लंबी टनल का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माणाधीन टनल का अब सिर्फ 500 मीटर हिस्सा ही बाकी बचा है। छोटी दिवाली यानी शनिवार रात की शिफ्ट में नाइट शिफ्ट के श्रमिकों व कर्मियों का दल टनल के अंदर साइट पर गया। दीपावली यानी रविवार की सुबह ये अपनी शिफ्ट पूरी करके बाहर आने की तैयारी ही कर रहे थे कि अचानक बीच में टनल में भू-धसाव से भारी मात्रा में मलबा आ गया और उसका मुंह बंद हो गया। इनमें से कुछ श्रमिक मलबा गिरने के साथ ही जान जोखिम में डालते हुए भागकर सुरक्षित बाहर आ गए, लेकिन 40 श्रमिक अंदर ही कैद होकर रह गए। घटना की सूचना मिलते ही दीपावली छोड़कर जिला मुख्यालय से उत्तरकाशी के डीएम अभिषेक रूहेला, एसपी अर्पण यदुवंशी, सीडीओ गौरव कुमार, एडीएम, एसडीएम, सीओ और आसपास के थानों के फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, फायर सर्विस आदि को भी रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटाया गया, लेकिन मौके पर हालात ऐसे थे कि वे चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर पाए। जितना मलबा हटाकर रास्ता बनाते, ऊपर से और मलबा आ जाता। यानी, जिलास्तर पर जितना संभव था पूरा प्रशासनिक और पुलिसिया अमला अपनी ताकत झौंक चुका था, लेकिन दीपावली बीतने का इंतजार करते राज्यस्तर के सिस्टम को एक्टिव होने में एक दिन पूरा गुजर गया। वह भी तब, जब कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद रविवार दोपहर ही घटना के संबंध में मुख्यमंत्री से बात कर चुके थे।

घटना के एक दिन बाद मौके पर पहुंचे सीएम तो एक्टिव हुआ शासन

सोमवार सुबह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौके पर पहुंचे। उनके पहुंचने के साथ ही मंडल और शासन स्तर पर भी सरकारी मशीनरी एक्टिव हुई। आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा, मंडलायुक्त विनय शंकर पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंचे। इसके बाद विशेषज्ञों से बात हुई। क्या और कैसे किया जाना चाहिए, इस पर मंत्रणा हुई। देहरादून से सिंचाई विभाग और पेयजल निगम के विशेषज्ञ बुलाए गए। होरिजेंटल ड्रिलिंग मशीन बुलाई गई। टीएचडीसी, एलएंडटी की मशीनें और विशेषज्ञ बुलाए गए। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन प्रोजेक्ट निर्माण में जुटे रेल विकास निगम की मशीनों को भी मौके पर बुलाया गया, जो मंगलवार को पहुंच गईं। गाजियाबाद और हरिद्वार से विशाल पाइप मंगाने की कवायद हुई, ताकि मलबे के भीतर पाइपों को डालकर उनके जरिए फंसे मजदूरों को निकाला जा सके। इसमें एक दिन का समय लग गया। मंगलवार को यह सामान पहुंचने के साथ आगे का काम शुरू हुआ, लेकिन अब भी टनल में मलबा गिरने से मुश्किलें पेश आ रही हैं। मंगलवार दोपहर मशीनों और मजदूरों के ऊपर फिर मलबा गिरा, इससे काम में बाधा पड़ी।

राजधानी से मुख्यमंत्री कर रहे मॉनीटरिंग, टनल में फंसे हैं 8 राज्यों के 40 श्रमिक

इस बीच, राजधानी में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सिलक्यारा टनल हादसे और श्रमिकों को निकालने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन का अपडेट ले रहे हैं। अपने सरकारी आवास में उन्होंने अधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें मौके पर तैनात जिला प्रशासन के अधिकारियों व रेस्क्यू में जुटी एजेंसियों से निरंतर समन्वय बनाने और आवश्यकतानुसार सामग्री तत्काल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल की ओर से सरकार को उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, टनल में उत्तराखंड के 2, हिमाचल प्रदेश का 1, बिहार के 4, पश्चिमी बंगाल के 3, उत्तर प्रदेश के 8, उड़ीसा के 5, झारखंड के 15 और असम के 2 श्रमिक व कर्मी फंसे हैं।

ऐसे पहुंचाया जा रहा फंसे मजदूरों तक खाना-पानी, दवा भी भेजी गई

टनल के अंदर फंसे मजदूरों तक कंप्रेसर के माध्यम से लगातार ऑक्सीजन की सप्लाई की जा रही है। पाइप के जरिए हवा का दबाव बनाकर उन तक खाद्य सामग्री के पैकेट और पानी की सप्लाई भी सुनिश्चित की गई है। बुखार, उल्टी, घबराहट, सिरदर्द आदि जैसी स्थिति से निपटने के लिए उन तक पाइप में कंप्रेस करके दवा भी पहुंचाई गई है। इस बीच, अच्छी बात यह है कि फंसे हुए सभी लोग सुरक्षित हैं और उनसे वॉकीटॉकी के माध्यम से संपर्क हो रहा है। कुछ मजदूरों से उनके परिजनों की वॉकीटॉकी के माध्यम से बात भी कराई गई है।

पाइपों के जरिए एस्केप टनल बनाने का काम जल्द होगा शुरूः डीएम

मंगलवार शाम उत्तरकाशी के डीएम अभिषेक रूहेला ने बताया कि टनल में प्लेटफार्म बनाकर आगर ड्रिलिंग मशीन को फिक्स कर दिया गया है। अब मलबे के आरपार 900 एमएम व्यास के पाइप डालकर एस्केप टनल बनाने का काम जल्द शुरू हो जाएगा। तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों की टीम पाइप पुशिंग की प्रक्रिया शुरू कराने के लिए मौके पर है। उत्तराखंड पेयजल निगम के जीएम और ड्रिलिंग व बोरिंग के विशेषज्ञ दीपक मलिक इसकी अगुआई कर रहे हैं। मौके पर पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, सीमा सड़क संगठन, स्वास्थ्य विभाग व क्यूआरटी के सदस्यों सहित कुल 160 राहतकर्मी तैनात किए गए हैं।

एसडीआरएफ कमांडेंट लगातार मौके पर, वॉकीटॉकी के जरिए श्रमिकों से बात कर बढ़ा रहे मनोबल

सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन में जहां उत्तरकाशी के डीएम और एसपी समेत सभी प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी रविवार से ही लगातार जुटे हैं। वहीं, इनसे इतर भी एक अधिकारी हैं, जो देहरादून से दिपावली की रात ही चलकर तड़के घटनास्थल पर पहुंच गए और लगातार मौके पर डटे हैं। ये हैं एसडीआरएफ के कमांडेंट मणिकांत मिश्रा। मणिकांत पूर्व में उत्तरकाशी में तैनात रह चुके हैं। इसलिए, वहां की परिस्थितियों से भी ठीकठाक वाकिफ हैं। मौके पर वे लगातार न केवल रेस्क्यू में जुटे जवानों का हौसला बढ़ा रहे हैं, अपितु टनल में फंसे श्रमिकों से भी कुछ-कुछ अंतराल पर वाकीटॉकी के जरिए संपर्क करके उन्हें मनोबल बनाए रखने और जल्द ही सुरक्षित निकाल लिए जाने का ढाढस बंधा रहे हैं। इस बीच, एनडीआरएफ के डीआईजी गंभीर सिंह चौहान भी मंगलवार को रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लेने घटनास्थल पर पहुंचे।

उत्तरकाशी प्रशासन ने जारी किए विशेष हेल्पलाइन नंबर
टनल में फंसे लोगों के परिजनों की सुविधा और उनकी आशंकाओं के निवारण और उन्हें स्थिति की सही जानकारी उपलब्ध कराने के लिए उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने विशेष हेल्पलाइन शुरू की है। जिलास्तरीय आपातकालीन परिचालन केंद्र के हेल्पलाइन नंबर हैं- 01374-222722, 222126, 7500337269 और सिलक्यारा में स्थापित कंट्रोल रूम के हेल्पलाइन नंबर हैं- 7455991223 व 7818066867

भू-विज्ञानियों और तकनीकी विशेषज्ञों का दल जुटा जांच में

टनल में हुए भू-धसाव और भूस्खलन के कारणों की पड़ताल के लिए सरकार ने उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति गठित की है। इस कमेटी ने मौके पर पहुंचकर सुरंग और उसके ऊपर की पहाड़ी का सर्वेक्षण शुरू कर दिया है। कमेटी में यूएसडीएमए देहरादून के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार, वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. खइंग शिंग ल्युरई, जीएसआई के वैज्ञानिक सुनील कुमार यादव, सीबीआरआई रुड़की के वरिष्ठ वैज्ञानिक कौशिल पंडित, उपनिदेशक भूतत्व एवं खनिजकर्म विभाग जीडी प्रसाद और भूवैज्ञानिक यूएसडीएमए देहरादून तनड्रिला सरकार शामिल हैं।

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