उत्तराखंडराजनीति

कमजोरी दूर करने को उत्तराखंड क्रांति दल ने शुरू की ’कसरत’

देहरादून। उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत ने संगठनात्मक तौर पर ‘कमजोर’ पड़े दल में नई ऊर्जा भरने की कोशिशें शुरू की है। इसके लिए वे स्वयं गढ़वाल और कुमाऊं मंडल का दौरा करके संगठन की स्थिति का आकलन कर रहे हैं, वहीं राज्य हितैषी ताकतों से भी समन्वय बनाने की दिशा में भी कदम उठाया गया है। संगठन के लिहाज से आगामी निकाय और लोकसभा चुनावों को देखते हुए उनका फोकस ‘बूथ मैनेजमेंट’ पर है, जिसमें उक्रांद शुरू से ही काफी कमजोर रहा है।

वैचारिक भटकाव और तमाम गल्तियों ने पहुंचाया क्षेत्रीय दल को हाशिए पर

25 जुलाई 1979 को मसूरी में पृथक पर्वतीय राज्य की मांग के गर्भ से जन्मे उत्तराखंड क्रांति दल ने राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया। राज्य बना, लेकिन क्षेत्रीय राजनीतिक ताकत बनने के बजाय उक्रांद ‘वैचारिक भटकाव’ के दौर से गुजरते हुए हाशिए पर चला गया। वैचारिक भटकाव इस मायने में कि ठेठ पहाड़ी भावनाओं वाले दल ने हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर जैसे मैदानी जिलों की राजनीति को भी साधने का प्रयास किया, जहां पहले से ही भाजपा-कांग्रेस, सपा-बसपा जैसे खिलाड़ी बैठे थे। ऐसे में दल न पहाड़ केंद्रित रह पाया और न मैदान में कोई जगह बना पाया। मैदान में तो उसके लिए कभी कोई गुंजाइश थी ही नहीं। लिहाजा, धीरे-धीरे पहाड़ से भी उसका जनाधार खिसकता चला गया। पहले तीन, फिर चार और फिर एक विधायक वाला दल पिछली दो विधानसभाओं से शून्य पर पहुंच गया। उसकी टॉप लीडरशिप भी अपनी सीटें बचाने के बजाय लगातार गंवाते चली गई।

यूकेडी के प्रति सहानुभूति अब भी कम नहीं, अन्य दलों में भी हैं इसके लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले
ऐसा नहीं कि उक्रांद के प्रति सहानुभूति रखने वाले अब नहीं रहे। अब भी पहाड़ की आबादी का काफी बड़ा वर्ग उससे लगाव रखता है। संभवतः उक्रांद अकेला ऐसा दल है, जिसके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों में भी हैं और अच्छी-खासी संख्या में है। ये इन दलों के वे आम कार्यकर्ता हैं, जिनकी पृष्ठभूमि राज्य आंदोलन से जुड़ी रही है। इसके बावजूद, उक्रांद कई वजहों से आमलोगों के इस लगाव को ‘वोटों’ में तब्दील नहीं कर पाया। इसमें ‘वैचारिक भटकाव’ के अलावा एक बड़ा कारण आज तक कभी ग्रास रूट पर संगठन को खड़ा करने की दिशा में गंभीर कोशिश न होना रहा है।

‘केंद्रीय’ की भरमार, युवा रहे दरकिनार, कमजोर हुआ आधार
उक्रांद में हमेशा से ‘केंद्रीय नेताओं’ की भरमार रही है और बूथ खाली। दल में शीर्षस्तर से कभी युवा नेतृत्व को उभरने नहीं दिया गया। पहली पंक्ति तो दूर, उसे हमेशा तीसरी-चौथी पंक्ति में और कम ही दूसरी पंक्ति में रखा। ऐसे में सहानुभूति रखने वाले युवा चाहकर भी इससे जुड़ नहीं पाए या छिटकते चले गए। यही नहीं, समान विचारधारा वाली ताकतों से समन्वय के नाम पर भी दल ने जब भी कोशिश की, वह कोशिश ऐसे दलों या संगठनों के साथ की जिनकी वाह्य आधारित विचारधारा पिछले दो-एक दशक के राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य में पूरी तरह ‘आउटडेटेड’ हो चुकी। जो पूरी तरह जनाधारहीन हो चुके। अनुशासनहीनता और जितने मुंह-उतनी बयानबाजी ने भी हमेशा उक्रंाद की किरकिरी कराई और ‘अविश्वसनीयता’ बढ़ाई। इसके अलावा प्रचंड जनांदोलन के बीच 1996 में दल के लिए ‘व्यापक संभावना’ वाले लोकसभा चुनाव का बहिष्कार और यूपी से अगल होने के लिए चल रहे आंदोलन के दौर में ही फिर यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ना उक्रांद के लिए आत्मघाती रहा।

नए अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत की दो-तरफा रणनीति, बूथ मैनेजमेंट पर किया फोकस

बहरहाल, अब उक्रांद के मौजूदा नेतृत्व से छोटे स्तर पर ही सही, कुछ कोशिश होती दिख रही है। यह कोशिश फिलहाल दो तरफा है। एक तरफ संगठन को बूथ लेवल तक ले जाने की और दूसरी ओर राज्य हितैषी आंदोलनकारी ताकतों से तालमेल बिठाने की। दल के केंद्रीय अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत ने हाल ही में गढ़वाल और कुमाऊं मंडल का भ्रमण शुरू किया है। हाल ही में वे रुद्रप्रयाग और चमोली के सघन दौरे पर रहे। इसी सप्ताह वे कुमाऊं मंडल के जिलों का दौरा आरंभ करेंगे। केंद्रीय अध्यक्ष ने पदाधिकारियों से लेकर आम कार्यकर्ता तक को आगामी निकाय, पंचायत व लोकसभा चुनाव के लिए कमर कसने के लिए कहा। उन्होंने साफ कहा कि संगठन की मजबूती के लिए वार्ड व ग्राम स्तर तक काम करना होगा और वह भी काफी तेजी के साथ। बूथ को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखकर उसके मैनेजमेंट पर ध्यान देना होगा। इसके लिए उन्होंने ‘मेरा बूथ-मेरा संकल्प’ का नारा दिया। कहा कि वे स्वयं भी अपने बूथ के प्रभारी रहेंगे। लिहाजा, दल के प्रत्येक पदाधिकारी को अपने-अपने बूथ को मजबूत करने के लिए उसका प्रभार खुद संभालना होगा।

… और राज्यहितैषी ताकतों से समन्वय के लिए बनाई कमेटी

वहीं दूसरी ओर, शुक्रवार को केंद्रीय अध्यक्ष ने दल की मजबूती के लिए केंद्रीय कार्यालय प्रभारी सुनील ध्यानी, महेंद्र सिंह रावत, विपिन रावत, विजय बौड़ाई, विजयंत सिंह निजवाला, सुशील उनियाल, जगदीश सिंह कठायत व विजेंद्र रावत को शामिल करते हुए 8 सदस्यीय समन्वय समिति गठित की है। केंद्रीय कार्यालय प्रभारी सुनील ध्यानी का कहना है कि समन्वय समिति राज्य हितैषी विभिन्न सामाजिक संगठनों, खासकर आंदोलनकारी ताकतों से संपर्क कर राज्य के हित से जुड़े सवालों को सवालों मजबूती से उठाने के लिए तालमेल बिठाएगी। ध्यानी का कहना है कि उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन में सभी का साझा संघर्ष रहा है। इसलिए, राज्य के हितों की रक्षा के लिए भी सभी को साझा प्रयास करने होंगे।

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