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गढ़ नरेश के ‘उपहास’ से आहत भावनाओं ने डाली गढ़वाल सभा के रामलीला मंचन की बुनियाद

देहरादून। 1950 के दशक के शुरूआती वर्षों में देहरा नगर में होने वाली रामलीला में शहर के तमाम वर्गोंं के लोग जुटते थे। इनमें स्थानीय गढ़वाली मूल के लोग भी शामिल होते थे। फिर एक दिन मंचन के दौरान एक ऐसी घटना हुई, जिसने रामलीला में बतौर स्वयंसेवक सहयोग दे रहे गढ़वाली समाज की भावनाओं को आहत कर दिया। मामला तो जैसे-तैसे निपट गया, लेकिन इसने दूनघाटी में दूसरी रामलीला की बुनियाद डाल दी। वह रामलीला, जिसे अखिल गढ़वाल सभा ने शुरू किया और आगे चलकर यह चुक्खुवाला की रामलीला के नाम से विख्यात हुई।

 देहरादून में गढ़वाल मूल के लोगों का पहला संगठन 19 अगस्त 1901 को ‘गढ़वाली यूनियन’ के नाम से अस्तित्व में आया। इसे ‘गढ़वाल हित प्रचारिणी सभा’ के नाम से भी जाना जाता था। तारादत्त गैरोला, विश्वंभर दत्त चंदोला जैसे बुद्धिजीवी इसकी स्थापना के पीछे थे। इसी गढ़वाली यूनियन की बुनियाद पर 10 फरवरी 1952 को देहरादून में अखिल गढ़वाल सभा की स्थापना की गई, जिसके संस्थापक अध्यक्ष बने शिव सिंह गुसाईं और उर्बिदत्त उपाध्याय महासचिव चुने गए। गढ़वाली यूनियन के संस्थापक विश्वंभर दत्त चंदोला भी अखिल गढ़वाल सभा के संस्थापकों में शामिल रहे, जो आगे इसके अध्यक्ष भी बने। गढ़वाली यूनियन और बाद में अखिल गढ़वाल सभा का उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूकता का प्रसार करना और अपने समाज को एकजुट करना था। अखिल गढ़वाल सभा ने ही 1955 में देहरा नगर की दूसरी और पर्वतीय समाज की पहली रामलीला की शुरूआत की।

उर्बिदत्त के संकल्प से ऐसे हुई चुक्खुवाला की प्रसिद्ध रामलीला की शुरूआत
अखिल गढ़वाल सभा के रामलीला आयोजन से बतौर सचिव और बाद में अध्यक्ष जुड़े रहे धीरज सिंह नेगी रामलीला की शुरूआत के पीछे की जो कहानी बताते हैं, वह कहीं न कहीं उस दौर में अपने ‘प्रतीकों’ के प्रति आदर और आत्मसम्मान की भावना से जुड़ी है। बकौल नेगी, बात संभवतः 1954 की है। उर्बिदत्त उपाध्याय उस समय गढ़वाल सभा के महासचिव होते थे। तब नगर में होने वाले रामलीला आयोजन में वे बतौर स्वयंसेवक सहयोग करते थे।

एक दिन सीता स्वयंवर का मंचन हो रहा था। अलग-अलग देशों-रियासतों के राजा दर्शाए गए थे। इन्हीं में गढ़ नरेश को भी स्वयंवर में भाग लेने आया दिखाया गया। धनुष तोड़ने के तरह-तरह के राजाओं के किरदार यूं तो दर्शकों का मनोरंजन के लिए दर्शाए जाते थे। किंतु, इनमें गढ़ नरेश को काफी अमर्यादित ढंग से दीनहीन और हास्यास्पद दर्शाया गया। यह दृश्य उर्बिदत्त उपाध्याय को चुभ गया। गढ़वाली समाज के अन्य प्रबुद्ध लोगों की भावनाएं भी आहत हुईं। उर्बिदत्त व कुछ लोगों ने विरोध जताया। हंगामा हुआ। किसी तरह मामला शांत कराया गया। लेकिन, उर्बिदत्त उपाध्याय ने उसी समय यह संकल्प ले लिया कि अब वे अलग से रामलीला का मंचन कराकर ही रहेंगे। धीरज नेगी बताते हैं कि गढ़वाल सभा के महासचिव उर्बिदत्त उपाध्याय ने अगले ही सीजन यानी, साल-1955 में रामलीला मंचन के लिए कमर कस ली। विश्वंभर दत्त चंदोला उस समय सभा के अध्यक्ष थे। वे इस बात पर सहमत नहीं हुए कि गढ़वाल सभा के बैनरतले रामलीला मंचन हो। आखिरकार इसका भी रास्ता निकाला गया। गढ़वाल सभा ने आयोजन के लिए ‘गढ़वाल रामलीला परिषद’ नाम से अलग इकाई (भ्रातृ संस्था) बनाई। भोलादत्त सकलानी (बाद में नगर पालिका के अध्यक्ष और नगर विधायक भी रहे) इस परिषद के अध्यक्ष अध्यक्ष और गढ़वाल सभा के महासचिव उर्बिदत्त उपाध्याय ही परिषद के महासचिव भी बने।

जहां आज पीएंडटी कॉलोनी है, उस बहुगुणा कंपाउंड से हुई शुरूआत

गढ़वाल सभा की रामलीला परिषद ने पहला मंचन चुक्खुवाला में चक्रधर बहुगुणा के ‘बहुगुणा कंपाउंड’ में किया। यह काफी बड़ा प्लॉट या कहें, मैदान था। दो-तीन साल यहीं रामलीला का मंचन किया गया। बाद में 1960 के आसपास इस बहुगुणा कंपाउंड में ही पीएंडटी कॉलोनी का निर्माण शुरू हो गया। धीरज सिंह नेगी बताते हैं कि पोस्ट एंड टेलीग्रॉफ कॉलोनी का निर्माण शुरू होने के बाद वहीं नजदीक स्थित श्रीगुरू नानक बालक पब्लिक इंटर कॉलेज के कंपाउंड में रामलीला का मंचन शुरू हो गया। वहां 1983 तक मंचन हुआ और पूरे देहरादून में यह चुक्खुवाला की रामलीला के नाम से प्रसिद्ध हो गया, जिसमें काफी दूर-दूर से लोग आते थे। इस बीच, साल 1973-74 में ठाकुर वीर सिंह अध्यक्ष बने और उन्होंने गढ़वाल रामलीला परिषद को अलग से रजिस्टर्ड करवा दिया। इसके बाद से गढ़वाल सभा के लोग तो इससे जुड़े रहे, लेकिन मंचन विशुद्ध रूप से परिषद के बैनरतले ही होने लगा। इसके बाद कुछ वर्ष इस रामलीला का मंचन डोभालवाला स्थित स्कूल में और फिर नेशविला रोड स्थित एक छोटे मैदान में भी हुआ। बीच में एक साल इस रामलीला का मंचन डिस्पेंसरी रोड स्थित गांधी इंटर कॉलेज में भी हुआ। इस बीच, 1987 में दूरदर्शन से लोकप्रिय धारावाहिक ’रामायण’ का प्रसारण होने के बाद रामलीलाओं में दर्शक उत्तरोत्तर घटने लगे। कई अन्य तरह की दिक्कतें भी आने लगीं। लिहाजा, 1990 में गढ़वाल रामलीला परिषद ने मंचन हमेशा के लिए बंद कर दिया।अखिल गढ़वाल सभा के महासचिव गजेंद्र भंडारी बताते हैं कि 1990 में परिषद के आखिरी अध्यक्ष स्व. आदित्य राम बडोनी की अध्यक्षता में तत्कालीन कार्यकारिणी ने आखिरी मंचन के बाद गढवाल सभा भवन के प्रथम तल पर विधिवत हवन कर परिषद के रामलीला मंचन को सदा के लिए विराम देने की प्रक्रिया पूरी की। कुछ वर्ष बाद गढ़वाल रामलीला परिषद् की पूरी अचल संपत्ति हरी सिंह लिंगवाल व नवादा के गढ़वाली समाज को सौंप दी गई।

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(ऊपर मुख्य चित्र गढ़वाल रामलीला परिषद के 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध हुए हुए रामलीला मंचन के दौरान राम राजतिलक और पुरस्कार वितरण का है। चित्र में परिषद के अध्यक्ष धीरज नेगी और अन्य पदाधिकारियों के साथ ही प्रख्यात उत्तराखंड आंदोलनकारी नेत्री स्व. सुशीला बलूनी भी हैं, जो उस वक्त परिषद की उपाध्यक्ष थीं।)

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