सदियों पुराना वह वटवृक्ष जिस पर 150 से ज्यादा क्रांतिवीरों को अंग्रेजों ने लटकाया फांसी
रूड़की। दिल्ली-देहरादून हाईवे। इस हाईवे पर करीब 4 किलोमीटर दूर है सुनहरा। कभी गांव रहा सुनहरा अब रूड़की नगर निगम का वार्ड है। सुनहरा में एक विशाल वटवृक्ष है। सिर्फ विशाल ही नहीं, बेहद खास है यह वटवृक्ष। शहर के बड़े-बुजुर्ग इसकी उम्र 500 साल के आसपास आंकते हैं। यानी, तब से, जब भारत में मुगलों का आगमन भी नहीं हुआ था। हुआ भी, तो बहुत शुरूआती दौर रहा होगा।

इस बूढ़े पेड़ ने देखा मुगलों और अंग्रेजों का भारत आगमन
उम्र के लिहाज से इस वटवृक्ष ने तकरीबन पांच सदी का भारत देखा है। बाबर या हुमायूं के राज या फिर उससे भी पहले अंकुरत हुआ होगा एक बींज। मुगलिया शासन के उत्थान और पतन के बाद अंग्रेजों का पूरा राज इस वटवृक्ष ने देखा। इसने देखा, एक छोटे से गांव को रूड़की छावनी और फिर बड़े शहर में तब्दील होते। स्वाधीनता आंदोलन और अंग्रजी हुकूमत के जुल्म-ओ-सितम का यह गवाह रहा है। आजाद भारत की हर आम-ओ-खास घटना को भी इसने देखा है। मगर, इस सबसे इतर भी यह वटवृक्ष बहुत खास है। खास इस मायने में कि यह महज वृक्ष नहीं, बल्कि भारत की पहली क्रांति का ‘स्मारक’ है, ‘क्रांति तीर्थ’ है।

कुंजा बहादुरपुर में हुआ था ईस्ट इंडिया कंपनी के जुल्मों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह
10 मई 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति की शुरूआत हुई थी। लेकिन, सुनहरा गांव के इस वटवृक्ष और आज के रूड़की के नजदीकी कुंजा बहादुरपुर के लिए पहली क्रांति उससे भी काफी पहले हो चुकी थी। ऐतिहासिक तथ्यों और जनश्रुति के अनुसार, 1824 में कुंजा बहादुरपुर में राजा विजय सिंह की अगुआई में अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह हुआ। विद्रोह की ज्वाला जबरन लगान वसूली के विरोध में भड़की। हालांकि, कुछ तथ्यों में यह साल 1824 के बजाय 1822 मिलता है। बहरहाल, इस संघर्ष को कुचलने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने जुल्म ढाए। कई ग्रामीण शहीद हुए। कुंजा बहादुरपुर और आसपास के काफी ग्रामीण पकड़ लिए गए। क्षेत्र में मान्यता है कि पकड़े गए ऐसे 150 से ज्यादा क्रांतिवीरों को अंग्रेजों ने सुनहरा गांव लाकर इसी विशाल वटवृक्ष पर लटकाकर फांसी दे दी। ग्रामीणों का कहना है कि जब 1857 की क्रांति हुई, तब भी काफी ग्रामीणों को यहां फंासी दी गई।
सुनहरा का वटवृक्ष अब बन चुका क्रांति तीर्थ
स्वतंत्रता के पश्चात 1950 के दशक में लोगों ने सुनहरा गांव के इस विशाल वटवृक्ष के नीचे हर साल 10 मई को उन ज्ञात-अज्ञात शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का सिलसिला आरंभ किया, जिन्हें यहां फंासी पर लटका दिया गया था। कन्हैयालाल राजकीय पॉलिटेक्नीक के छात्रावास व आवासीय परिसर क्षेत्र में स्थित इस वटवृक्ष के चारों ओर बाउंड्रीवॉल करने के साथ ही वहां कुछ स्ट्रक्चर भी बना दिए गए है। इस साल भी बुधवार 10 मई को काफी रूड़कीवासी सुनहरा के इस वटवृक्ष के नीचे जुटे और शहीदों को याद किया।

