देहरादून में 16 साल पहले ग्यारहगांव-हिंदाव वासियों ने डाली थी ‘सामूहिक इगास’ की बुनियाद
देहरादून। लोकपर्व ‘ईगास’ आज सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, देशभर में जाना जाने लगा है। राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के दो लोकपर्वों को यहां से बाहर भी खासी पहचान मिली है। एक, ‘हरेला’ और दूसरा ‘इगास।’
90 के दशक तक के उत्तराखंड क्षेत्र में भी हरेला मुख्यतः कुमाऊं मंडल और इगास गढ़वाल मंडल में ही आमतौर पर मनाए जाते रहे हैं, लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशक में तस्वीर काफी बदली है। मंडलों से बाहर ये त्योहर राज्यव्यापी हुए हैं और देश-दुनिया में भी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। अकेले राजधानी देहरादून की ही बात करें, तो यहां दर्जनभर से ज्यादा स्थानों पर इगास के सामूहिक-सार्वजनिक आयोजन हो रहे हैं। कॉलोनियों में लोग इस पर्व को मना रहे हैं। राजनीतिक दल भी इसे उत्साहपूर्वक मनाने में पीछे नहीं हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि पहाड़ों से बाहर मैदानी क्षेत्र और खासकर राजधानी देहरादून में पहले-पहल इगास को सार्वजनिक स्थान पर सामूहिक रूप से मनाने की शुरूआत कब-कहां और कैसे हुई? इगास के अवसर पर आइए आपको राजधानी में इस लोकपर्व को सार्वजनिक तौर पर मनाए जाने की शुरूआती कहानी सुनाते हैं।
साल-2007 में अजबपुर की माता मंदिर कॉलोनी में लगाया था इगास का पहला पंडाल
साल-2007 से पहले इगास सिर्फ पहाड़ तक ही सीमित था। हालांकि, दून में भी राज्य आंदोलन के दौर से कुछ लोग इसे अपने घरों में मनाने लगे थे, लेकिन कोई सार्वजनिक आयोजन नहीं होता था। आमतौर पर इगास के आसपास लोग पहाड़ स्थित अपने गांवों में इस लोकपर्व को मनाने चले जाते थे। दीपावली के 11वें दिन मनाई जाने वाली देवोत्थानी एकादशी (इगास) पर देहरादून में नवंबर-2007 में ग्यारहगांव हिंदाव सामाजिक-सांस्कृतिक एवं विकास समिति ने एक पहल की। समिति ने पहाड़ के लोकपर्व इगास को उल्लास के साथ मनाने के लिए अजबपुर माता मंदिर कॉलोनी (मंदिर के पीछे) स्थित एक खुले स्थान को चुना। पंडाल लगा, मंच सजा, ढोल-दमौं बजे। लोकगायकों ने गीत गाए। छोटे बच्चों ने नृत्य किए। फिर बड़े सामूहिक रूप से ‘झुमैलो’ में झूमे। आखिर में रस्सी के सहारे बंधे लकड़ी के गट्ठर को जलाकर खास अंदाज में ‘भैलो’ खेला गया। सौंले-पकोड़े बंटे और देर रात तक समिति के पदाधिकारियों-सदस्यों के साथ ही काफी संख्या में आसपास के अन्य लोग व विभिन्न संस्थाओं के आमंत्रित प्रतिनिधि इगास के इस सामूहिक उल्लास में सहभागी बने। अगले वर्ष से समिति ने इगास के इस आयोजन का विस्तार किया और इसे सरस्वती विहार में किया जाने लगा।
बातों-बातों में लिया ग्यारहगांव-हिंदाव सामाजिक-सांस्कृतिक एवं विकास समिति ने जन्म
टिहरी जिले की घनसाली तहसील (भिलंगना ब्लॉक) की दो पट्टियां हैं ग्यारहगांव और हिंदाव। घनसाली-तिलवाड़ा-रूद्रप्रयाग हाईवे से अलग हटकर गोलाकार घाटीनुमा क्षेत्र में आपस में जुड़ी हैं यह दोनो पट्टियां। यह क्षेत्र उत्तराखंड आंदोलन के प्रणेता पर्वतीय गांधी इंद्रमणि बडोनी और गढ़वाली लीलारामायण के रचयिता गुणानंद पथिक की जन्मस्थली रहा है। इसी क्षेत्र में स्थित देवी जगदी और भगवान विश्वनाथ की डोली यात्रा पिछले 25 वर्षों से पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी निकालते आ रहे हें, जो अब पूरे उत्तराखंड में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी है। ग्यारहगांव-हिंदाव क्षेत्र के निवासी काफी संख्या में देहरादून में दशकों से रह रहे हैं। इन्हें आपस में जोड़कर क्षेत्र के सरोकारों पर बात करने और सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर योगदान देने के लिए अगस्त-2007 में देहरादून में ग्यारहगांव-हिंदाव सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विकास समिति की स्थापना की गई। मैदानी क्षेत्र में इगास आयोजन की बुनियाद रखने वाली इस समिति की स्थापना की कहानी भी कम रोचक नहीं है। जुलाई-2007 की एक दोपहरी की बात है।
नगर निगम में उस समय मेयर विनोद चमोली की अध्यक्षता वाला बोर्ड था। रेसकोर्स-धर्मपुर निवासी राज्य आंदोलनकारी गणेश डंगवाल भी इस बोर्ड में सदस्य थे। उस दोपहर पत्रकार सुधाकर भट्ट और जितेंद्र अंथवाल रूटीन में नगर निगम पहुंचे, तो वहां पार्षद डंगवाल भी मिल गए। तीनों के बीच बातों-बातों में ही दून में रह रहे ग्यारहगांव-हिंदाव वासियों को सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर एकजुट करने और क्षेत्र के विकास पर चर्चा के लिए संस्था की स्थापना करने की रूपरेखा बनी। चूंकि, मूलरूप से ग्यारहगांव निवासी फर्नीचर व्यवसायी और तत्कालीन उक्रांद नेता (अब भाजपा) विनोद नौटियाल को लोगों को संगठित करने में महारथ हासिल थी। लिहाजा, उन्हें भी नगर निगम में बुलाया गया। वहीं, पूरी रूपरेखा तैयार हुई और आगे का काम नौटियाल पर छोड़ दिया गया। नौटियाल ने दून में रह रहे दोनो पट्टियों के तमाम लोगों से संपर्क किया। शास्त्रीनगर स्थित उनके सिद्धि विनायक फर्नीचर स्थित हॉल में अगस्त-2007 में बैठक हुई, जिसमें ग्यारहगांव-हिंदाव सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विकास समिति की विधिवत स्थापना कर दी गई।
ऐसे बनी पहले इगास आयोजन की योजना, ‘भैलो’ को लेकर आईं शुरूआती मुश्किलें

ग्यारहगांव-हिंदाव सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विकास समिति की स्थापना बैठक में सत्ये सिंह राणा, विनोद नौटियाल, शिव प्रसाद बडोनी, शिव प्रसाद डंगवाल, बचन सिंह राणा, अकबर सिंह नेगी, दिनेश पैन्यूली, हरि सिंह लुठियागी, उम्मेद सिंह राणा, नारायण सिंह रावत, रामानंद डंगवाल, कमल सिंह बिष्ट समेत काफी लोग शामिल हुए। बाद में और भी बहुत से लोग इसमें जुड़ते चले गए। सत्ये सिंह राणा को समिति के अध्यक्ष और विनोद नौटियाल को महामंत्री का दायित्व सौंपा गया। वे अगले सात-आठ वर्षों तक इन पदों पर रहे। चूंकि, इगास ज्यादा दूर नहीं थी।
लिहाजा, इसी स्थापना बैठक में नौटियाल ने यह सुझाव रखा कि समिति की ओर से अपनी लोक संस्कृति से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए इगास पर सार्वजनिक आयोजन किया जाए। इस पर उपाध्यक्ष रहे बचन सिंह राणा व अन्य ने अजबपुर माता मंदिर कॉलोनी में सभी व्यवस्थाएं कर लेने का जिम्मा उठाते हुए वहां आयोजन का प्रस्ताव रखा। इस तरह इस आयोजन की शुरूआत हुई, जो अब तक समिति का सालभर का प्रमुख आकर्षण बना हुआ है। समिति के पूर्व महामंत्री नौटियाल बताते हैं कि पहली बार के आयोजन में इगास के मुख्य आकर्षण ‘भैलो’ को लेकर शुरू में थोड़ा दिक्कत आई। क्योंकि, भैलो को बनाना और जलते हुए चलाना एक खास तकनीक पर आधारित है। इसे बनाने की महारथ बहुत कम लोगों को ही होती है। बहरहाल, समिति के बीच ही दो-तीन लोगों ने इसका जिम्मा संभाल लिया और भैलो भी पूरे उल्लास के साथ खेला गया।
राजधानी में अब दर्जनभर से ज्यादा स्थानों पर होता है इगास का सामूहिक-सार्वजनिक आयोजन
साल-2011 में सामाजिक संस्था ‘धाद’ ने भी राजधानी के सहस्त्रधारा रोड स्थित राजेश्वर नगर में पहाड़ से आए बच्चों के साथ सामूहिक तौर पर इगास मनाया। धाद के सचिव तन्मय ममगाईं बताते हैं कि अब पिछले कुछ वर्षों से संस्कृति विभाग के हरिद्वार बाइपास रोड स्थित सभागार में इगास का आयोजन उनकी संस्था कर रही है। इसी तरह, साल-2015 में बदरी-केदार सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार मनोज ईष्टवाल ने कुछ परेड मैदान स्थित धरना स्थल से इगास के सामूहिक आयोजन की पहल की। अगले वर्ष यानी 2016 से इसे विस्तार दिया गया। 2016 में इसमें सांसद अनिल बलूनी भी शामिल हुए।
ईष्टवाल और गजेंद्र रमोला ने सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल परिसर में इसका भव्य पैमाने पर आयोजन किया। पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन नेगी, महासचिव रामलाल खंडूरी, जिलाध्यक्ष प्रदीप कुकरेती, जयदीप सकलानी, रविंद्र जुगरान, अशोक वर्मा, केशव उनियाल व अन्य आंदोलनकारियों ने कलक्ट्रेट स्थित शहीद स्मारक परिसर में इगास के उल्लास की शुरूआत की है। इसमें महिला आंदोलनकारी भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेती हैं। राठ जन विकास समिति की ओर से भी पिछले कुछेक वर्षों से इगास पर बड़ा आयोजन किया जाता है।
इधर, दो-तीन साल से राजकुमार कक्कड़, गौरव खंडूरी, विनय बंसल आदि की अगुआई में उत्कर्ष जन कल्याण सेवा समिति भी इगास के मौके पर राजधानी में भव्य ढंग से सांस्कृतिक और भैलो खेलकर लोकपर्व के उल्लास का हिस्सा बनती है। अखिल गढ़वाल सभा और सरस्वती विहार जन कल्याण समिति के महासचिव गजेंद्र भंडारी बताते हैं कि उनकी समिति भी कॉलोनी में इस बार यह आयोजन कर रही है।

चूंकि, गढ़वाल सभा से जुड़े तमाम लोग अलग-अलग स्थानों पर आयोजन करते हैं, इसलिए सभा अलग से कोई आयोजन करने के बजाय इन्हीं आयोजन में शामिल होती है। मुख्यमंत्री आवास, उत्तराखंड क्रांति दल के मुख्यालय, उत्तरांचल प्रेस क्लब समेत कई जगह इगास पर आयोजन होते हैं। बहरहाल, ग्यारहगांव-हिंदाव सामाजिक, सांस्कृतिक एवं विकास समिति ने पहाड़ से बाहर मैदान में सामूहिक इगास की जो परंपरा आरंभ की थी, वह निरंतर और व्यापकता के साथ आगे बढ़ते हुए पहाड़ के लोकपर्वों के उल्लास से लोगों को जोड़ रही है।

