मलबे के ढेर में बदली गांधी-नेहरू से लेकर कलाम तक को करीब से देख चुकी 125 साल पुरानी हेरिटेज बिल्डिंग
देहरादून। वह 125 साल पुरानी बिल्डिंग थी। इस बिल्डिंग ने ब्रिटिश देहरा को बेहद करीब से देखा। इसने स्वाधीनता आंदोलन का पूरा दौर देखा। ‘प्रिंसेस ऑफ वेल्स’ जैसी ब्रितानी हस्ती से लेकर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मदन मोहन मालवीय समेत स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम पंक्ति के तमाम नेता इसके पास आकर ठिठके और फिर आगे बढ़े। भारत की महान हस्तियों में आखिरी बार इसने करीब डेढ़ दशक पहले अपने आगे से गुजरते राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का दीदार किया। इन 125 सालों में इस बिल्डिंग ने लाखों लोगों को अपने ‘आंगन’-अपने आगे से गुजरते देखा। यह हेरिटेज बिल्डिंग अब नहीं रही। उसे ‘नई और स्मार्ट’ बिल्डिंग के लिए ‘मौत’ दे दी गई है। मलबे के ढेर में तब्दील कर दिया गया है।
हर्रावाला रेलवे स्टेशन के विस्तार की भेंट चढ़ी पुरानी बिल्डिंग
सरकारें हर्रावाला रेलवे स्टेशन का रि-डेवलपमेंट कर रहे हैं। देहरादून स्टेशन की भीड़ को कम करने के लिए हर्रावाला स्टेशन को विस्तार दिया जा रहा है। इसके चलते इन नवरात्र में काम शुरू किया गया। लेकिन, स्टेशन विस्तारीकरण की भेंट रेलवे ने चढ़ाया 125 साल पुरानी स्टेशन बिल्डिंग को। पिछले चार-छह दिन में इसे ध्वस्त करने का कार्य शुरू किया गया। अब वहां सिर्फ ईंट-पत्थर और प्लास्टर के मलबे का ढेर लगा है। ब्रिटिशकालीन बिल्डिंग के अगल-बगल पिछले कुछ दशकों में रेलवे की बनाई अन्य बिल्डिंगों को यथवत रखा गया है।
1898-99 में हुआ था हर्रावाला स्टेशन और बिल्डिंग का निर्माण
हरिद्वार-देहरा के बीच 1 मार्च 1900 को स्टीम इंजन ‘बी-26’ जब पहली एलडी ट्रेन में कुछ अंग्रेज अधिकारियों और रेलवे लाइन निर्माणकर्ता कंपनी के अधिकारियों को लेकर पहली ट्रेन चली थी। देहरा पहुंचने से पहले यह आसपास जंगल और खेतों से भरे हर्रावाला ‘गांव’ के इस स्टेशन बिल्डिंग के आगे से धड़धड़ाते हुए गुजरी थी। दरअसल, हरिद्वार 1 जनवरी 1886 को ही रेलसेवा से जुड़ गया था। हरिद्वार तक ट्रेेेनों का आगमन होने के बाद अंग्रेजों का फोकस देहरादून जिले को इससे जोड़ने पर केंद्रित हुआ। 6 जनवरी 1897 को ब्रिटिश सरकार के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट और कलकत्ता की एक कंपनी के बीच हरिद्वार-देहरादून ब्रांच लाइन बिछाने के लिए अनुबंध हुआ। इसके बाद अवध और रूहेलखंड रेलवे कंपनी का गठन किया गया। इस कंपनी की एजेंसी, हरिद्वार-देहरा रेल कंपनी और ब्रिटिश सरकार के बीच 26 मार्च 1897 को रेल लाइन के निर्माण, मेंटेनेंस और ट्रेनों के संचालन के संबंध में अनुबंध हुआ।
हालांकि, यह प्रक्रिया 1886 को इस रेल लाइन के लिए फाइनल सर्वे के साथ ही शुरू हो गई थी। इससे पहले भी इस लाइन के लिए सर्वे हुए थे, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। अंततः 1897 में इस रेल लाइन के एलाइनमेंट और इस्टीमेट समेत डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार की गई। मसूरी स्थित मफसलाइट प्रिंटिंग वर्क्स कंपनी लि. में यह रिपोर्ट छपवाई गई। डीपीआर के महज दो साल के भीतर यानी 1899 में देहरा रेलवे स्टेशन की बिल्डिंग बनकर तैयार कर दी गई। इससे ठीक कुछ माह पूर्व 1898-99 में देहरा से 10 किलोमीटर पहले हर्रावाला रेलवे स्टेशन और इसकी बिल्डिंग का निर्माण किया गया। यह बिल्डिंग अभी चार दिन पहले तक, यानी 125 साल अस्तित्व में रही।
नई बिल्डिंग, प्लेटफार्म और एफओबी का होगा निर्माण, आ सकेंगी 24 कोच की ट्रेनें
हर्रावाला के स्टेशन अधीक्षक गोपाल सिंह बिष्ट का कहना है कि स्टेशन के विस्तार के लिए पुरानी बिल्डिंग को हटाया गया है। जहां बिल्डिंग थी, उसके पास से एफओबी (फुटओवर ब्रिज) का निर्माण किया जाना है। एक नया प्लेटफार्म भी बनना है। बकौल बिष्ट, अभी तक के प्लान के अनुसार अगल-बगल की बिल्डिंगें यथावत रहेंगी।

वहीं, रेलवे के सीनियर सेक्शन इंजीनियर एसएस रावत का कहना है कि स्टेशन की नई बिल्डिंग का डिजाइन अभी फाइनल होना है। पुरानी बिल्डिंग 1898-99 में बनी थी। लिहाजा, उसे हटाकर उसी के स्थान पर नई बिल्डिंग बनाए जाने का प्रस्ताव है। साथ ही एफओबी और सामने की ओर एक नया प्लेटफार्म भी बनेगा। एक वर्ष के भीतर प्लेटफार्म और नई बिल्डिंग का निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल, देहरादून तक सिर्फ 18 कोच की टेªनें ही आ पा रही हैं। हर्रावाला स्टेशन पर काम पूरा होने के बाद 24 कोच की टेªनें यहां तक आ सकेंगी। देहरादून स्टेशन का दबाव भी कुछ कम होगा। रेलवे की ओर से स्टेशन विस्तार के लिए भूमि की आवश्यकता को लेकर सरकार को प्रस्ताव भी भेजा गया है।

